Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 174
________________ मानवीय सम्बन्ध और ध्यान १६३ इसमें हमारी जागरूकता बहुत काम देती है। भाव-क्रिया का प्रयोग बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। हमने हाथ उठाया और हमें यह ध्यान रहा कि हमारा हाथ उठ रहा है। यदि यह ध्यान बराबर बना रहे तो यह हाथ किसी को चांटा नहीं मारेगा। इसलिए कि व्यक्ति यह जान रहा है-हाथ उठ रहा है और उसे यह भी भान है कि हाथ कहां जा रहा है। जिस क्रिया में बराबर जागरूकता रहती है, उस क्रिया में बहुत अंतर आ जाता है। सीख गुरजिएफ की रूस में एक बहुत बड़े योगी हुए हैं गुरजिएफ। अन्तिम समय था। लड़के ने कहा-आप मुझे कोई सीख दें। गुरजिएफ ने अंतिम सीख दी-बेटा ! देखो, कभी गुस्सा आने का प्रसंग आ जाए तो कम से कम चौबीस घंटे पहले गुस्सा मत करना। इस क्षण गुस्सा करने का प्रसंग है। क्या चौबीस घंटे बाद कोई गुस्सा करेगा? एक घंटा, आधा घंटा में ही गुस्सा समाप्त हो जाएगा। चौबीस घंटा बाद तो कोई गुस्सा कर नहीं सकता। आवेग तत्काल आता है, समय निकल जाता है तो गुस्सा करने का प्रश्न ही शेष नहीं रहता। इतनी जागरूकता बढ़ जाए-मुझे चौबीस घंटे का अंतराल देना है तो कोई भी आवेश टिक नहीं सकता। यह भावक्रिया ध्यान का ऐसा प्रयोग है, जिसे प्रतिक्षण किया जा सकता है। चौबीस घंटा यह ध्यान सध सकता है। केवल जागते हुए ही नहीं, सोते हुए भी व्यक्ति ध्यान कर सकता है। भीतर से आती है जागरूकता ___ जागरूकता बाहर में नहीं, भीतर में है। अवचेतन मन में जागरूकता रहती है। बाहर की क्रिया तो उसके साथ चलती है। भीतर से ही प्रमाद आता है और भीतर से ही जागरूकता। बाहर का मन चेतन मन है। वह आंतरिक प्रेरणा की क्रियान्विति कर देता है। मूल स्रोत यही है। इस अर्थ में ध्यान हमारे लिए बहुत उपयोगी बनता है। जागरूकता ध्यान का निश्चित परिणाम है। ध्यान शिविर में जितनी जागरूकता आती है, उतनी जागरूकता उसके बाद भी रह जाए तो जीवन बदल जाए। समस्या यह है-ध्यान शिविर में जितनी जागरूकता रहती है उतनी बाद में नहीं रहती। यदि उसका पांच-दस प्रतिशत रह जाए तो भी ऐसा लगेगा-व्यक्ति कुछ बदल कर आया है। परिवार के लोग सोचेंगे-शिविर में रखना अच्छा है, आवश्यक है। पहले लड़ाई करता था, आपस में झगड़े करता था, अब नहीं करता है। पहले गालियां देता था, अब नहीं देता है। पहले सामने बोलता था, कहना नहीं मानता था, अब बड़ा शालीन बन गया है। ध्यान का परिणाम है परिवर्तन । यदि परिवर्तन न आए तो ध्यान शिविर में भाग लेने की सार्थकता क्या होगी? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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