Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 178
________________ सुरक्षा और ध्यान आज का वातावरण हिंसा और आतंक का वातावरण है। हर व्यक्ति अपने-आपको असुरक्षित अनुभव करता है। विशेषत: वे लोग, जो नेता हैं, राजनीति में लगे हए हैं, धनपति और उद्योगपति हैं, अपने आपको अधिक असुरक्षित अनुभव करते हैं। सुरक्षा के लिए जितने कमाण्डो आज चल रहे हैं, संभवत: पहले नहीं रहे होंगे। पहले किसी विशिष्ट राजा आदि के साथ सुरक्षा की व्यवस्था चलती थी। आज तो सैकड़ों-हजारों लोगों के साथ सुरक्षा की व्यवस्था चलती है। एक भय का-सा वातावरण समाज में बना हुआ है। यह सोचने के लिए विवश करता है-क्या मनुष्य कहीं सुरक्षित है? क्या उसके लिए सुरक्षा की कोई व्यवस्था है? इस प्रश्न का उत्तर अपने आपमें खोजना होगा और वह होगा-हर व्यक्ति सुरक्षित है, हर व्यक्ति असुरक्षित है। दुनिया का कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं, जिसके पास अपने सुरक्षा की व्यवस्था न हो और कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं, जो असुरक्षित न हो। प्रश्न है-सुरक्षा कहां है? व्यक्ति जितना-जितना अपने-आपमें होता है, अपनी चेतना के साथ जुड़ा हुआ रहता है, उतनी-उतनी सुरक्षा है। जितना-जितना बाहर फैलता है, पदार्थ के साथ जुड़ता है, उतनी-उतनी असुरक्षा है। घर में चोर आया। धन लूटा और धनपति को भी मार दिया। वह धन की भी सुरक्षा नहीं कर सकता। व्यक्ति के पास में शस्त्र था और पहले ही दूसरे ने शस्त्र से वार कर दिया। व्यक्ति मर गया, शस्त्र भी रक्षा नहीं कर सकता। सुरक्षा के जितने साधन माने जाते हैं, वे सब असुरक्षा के साधन बन जाते हैं। सुरक्षा है अपनी आत्मा में रहना, अपनी चेतना में रहना। इसके सिवाय सुरक्षा का कोई ऐकांतिक साधन नहीं है। केवल अध्यात्म ही सुरक्षा का ऐकांतिक और आत्यंतिक साधन है। भय का हेतु असुरक्षा क्या है? व्यक्ति में एक मूर्छा है। शरीर के प्रति मर्छा है, पदार्थ के प्रति मूर्छा है। वह मूर्छा भय पैदा करती है और भय व्यक्ति को असुरक्षित बनाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194