Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 187
________________ तब होता है ध्यान का जन्म वाणी का संयम ध्यान की दूसरी कसौटी है-वाणी का संयम । यदि ध्यान करने वाला व्यक्ति अनावश्यक बातें करता है, व्यर्थ की बकवास करता है, अफवाहें फैलाता है, कड़वी भाषा बोलता है तो मानना चाहिए-ध्यान निष्पन्न नहीं हुआ। ध्यान का एक अनिवार्य परिणाम है वाणी का संयम। मौन करना बहुत अच्छा है पर मेरी दृष्टि में मौन से भी अधिक उपयोगी है वाणी का संयम। मौन कितने समय किया जा सकता है? एक घण्टा, दो घण्टा, एक दिन अथवा दो दिन । यह संभव नहीं है कि व्यक्ति जीवन पर्यन्त मौन करे। व्यक्ति ने एक घण्टा मौन किया और शेष घण्टों में मौन की सारी कसर निकाल ली तो मौन का अर्थ कम हो गया। दशवैकालिक सूत्र में कहा गया-वह बोलता हुआ भी मौन ही है, जिसके वचन की गुप्ति है, वाणी का संयम है। जिसके वाणी का संयम नहीं है, वह नहीं बोलता हुआ भी वाचाल है। वाणी का संयम होना, वाणी का विवेक होना बहुत बड़ी उपलब्धि है। समाज के साथ सारा सम्पर्क जुड़ता है वाणी के द्वारा। इसीलिए कहा गया है-'बोल्या के लाधा।' यह राजस्थानी कहावत है। इसका तात्पर्य है-आदमी कैसा है? यह जानना है तो उसकी वाणी को परख लो। बोलने में कितना फूहड़ है, कितना समझदार है, यह बोलने से स्वयं पता लग जायेगा। ध्यान की उपसम्पदा के दो सूत्र हैं--मित आहार और मित भाषण या मौन । उपसम्पदा के जो सूत्र हैं, वे हमारे आचरण-सूत्र हैं। प्रेक्षाध्यान के द्वारा उन्हें सिद्ध करना है। आपने ध्यान किया। बहुत आनन्द आया। जैसे ही ध्यान पूरा कर परिजनों, मित्रों और पड़ोसियों के बीच गये, वही कटु व्यवहार शुरू कर दिया तो उनके पल्ले क्या पड़ा? आनन्द आपका व्यक्तिगत प्रश्न हो सकता है किन्तु दूसरों के प्रति वही व्यवहार है तो दूसरा यही कहेगा-यह ध्यान नहीं है, ढोंग है। हम उसकी इस प्रतिक्रिया को गलत कैसे कह सकते हैं? पांच-दस वर्ष से निरन्तर ध्यान करने वाले का व्यवहार नहीं बदलता है तो ध्यान और रूढ़िवादी धर्म में क्या अन्तर किया जा सकेगा? ध्यान रूपान्तरण की प्रक्रिया है। जैसे रूढ़िवादी धर्म की धारणाओं से आज परिवर्तन नहीं होता वैसी ही दशा ध्यान की बन जायेगी। बहुत अनिवार्य है व्यवहार का परिवर्तन । जागरूकता ____ ध्यान की तीसरी कसौटी है-जागरूकता। जागरूकता होना बहुत आवश्यक है। यह साधना का सबसे बड़ा सूत्र है। महावीर की समग्र साधना का एक मात्र सूत्र है अप्रमाद। साधना का विघ्न है प्रमाद और साधना का सूत्र है अप्रमाद । प्रमाद मत करो, विस्मृति मत करो, भूलो मत, प्रतिक्षण जागरूक रहो। जिस व्यक्ति में जागरूकता आ गई, उसके कर्तव्य का निर्वाह अच्छा होगा, उत्तरदायित्व का निर्वाह अच्छा होगा। जो व्यक्ति जागरूक नहीं होता, वह सम्यक् समझ ही नहीं पाता। जागरूकता आती है तो विषय को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194