Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 191
________________ १८० तब होता है ध्यान का जन्म तेरापंथ के तीसरे आचार्य थे श्री रायचन्दजी। वे सहज साधक थे। उनका एक नाम था ब्रह्मचारीजी। बहुत पवित्र आत्मा थे। जब आचार्य पद पर आसीन हो रहे थे। किसी ने कहा-महराज ! यह क्या दिन देखा ! यह तो नखेद तिथि है। निषेध का व्यवहार में उच्चारण ‘नखेद' होता है। भाई ने कहा-महाराज ! नखेद तिथि में पदाभिषेक हो रहा है। ऋषिराय ने कहा-अरे ! बहुत अच्छा हुआ, हमने तो देखा नहीं, सहज ही अच्छा हो गया। 'नखेद' अर्थात् न खेद-कोई खेद नहीं है। मिथ्या सम्यक् में परिणत हो गया, दुःख सुख में बदल गया। यह स्थिति तब बनती है जब हमारी ध्यान की साधना सध जाए। उस स्थिति में इच्छा के अभिघात से होने वाली चोट नहीं लगती, किन्तु हम स्वयं उस घटना को सम्यक् ग्रहण कर लेते हैं। यदि इच्छा किसी के बाधा डालने से सफल न बने तो भी मन में कष्ट नहीं होगा, बाधा डालने वाले व्यक्ति के प्रति द्वेष नहीं होगा, शत्रुता नहीं होगी। यह चिंतन प्रस्फुटित होगा-मैंने अपना काम कर लिया, पुरुषार्थ कर लिया। उसने अपना काम कर लिया। संन्यासी ने कितना मार्मिक कहा था-'बिच्छु डंक मार रहा है तो बिच्छु अपना काम कर रहा है और मैं उसे बार-बार पानी से बाहर निकाल रहा हूं तो मैं अपना काम कर रहा हूं।' यह दौर्मनस्य न होना ध्यान की कसौटी है। यदि ध्यान करने वाला व्यक्ति दौर्मनस्य का जीवन जीए तो ध्यान करने का क्या परिणाम आया? इच्छा की पूर्ति उसके हाथ में नहीं भी हो सकती है, किन्तु दु:ख न होना, दौर्मनस्य का पैदा न होना तो उसके हाथ में होना चाहिए। श्वास की संख्या में कमी ध्यान की छठी कसौटी है-श्वास की संख्या में कमी। आप ध्यान कर रहे हैं और आपकी श्वास की संख्या कम होती जा रही है तो मानें-ध्यान सध रहा है। यदि श्वास की संख्या पहले जैसी ही है अथवा बढ़ती जा रही है तो माने-ध्यान नहीं सध रहा है, आवेश बढ़ रहा है। ध्यान करने वाले व्यक्ति की एक महत्वपूर्ण पहचान है कि उसका श्वास कैसा है? ध्यान करने से पूर्व व्यक्ति सोलह, सतरह अथवा अठारह श्वास लेता है तो ध्यान के बाद उसमें कमी आनी चाहिए। चौदह, बारह, दस-इस प्रकार श्वास की संख्या घटनी चाहिए। जैसे-जैसे भीतर में शांति व्याप्त होगी, आवेश शांत होगा, कषाय का क्षेत्र-इमोशनल एरिया बिल्कुल संतुलित होती चली जाएगी, वैसे-वैसे श्वास की संख्या कम होती चली जायेगी। आप श्वास की संख्या को स्वयं नाप लें कि कितने श्वास आ रहे हैं। यह नाप एक महीने से किया जा सकता है, छह महीने अथवा बारह महीने से किया जा सकता है। जैसे एक्यूप्रशेर की पद्धति स्वयं-निदान की पद्धति है वैसे ही ध्यान करने वाले के लिए श्वास की संख्या का ज्ञान स्वयं का निदान है। श्वास की गति को देखो, पता लग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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