Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 194
________________ ध्यान के अवतरण के लिए कुछ मर्यादाओं का निर्देश किया गया है। बाहरी और आंतरिक दोनों वातावरण अनुकूल होते हैं तब ध्यान का जन्म होता है। स्वच्छ स्थान, कोलाहल से मुक्त पवित्र वातावरण, पद्मासन, वज्रासन या अर्द्धवज्रासन, बन्द या अधमूंदी आंखें, जिनमुद्रा, ज्ञानमुद्रा अथवा खुले हाथ की मुद्रा, बाएं हाथ पर दायां हाथ यह सब ध्यान का बाहरी वातावरण है। इस वातावरण में ध्यान का जन्म होता है। जब संग का त्याग होता है, आसक्ति कम होती है तब ध्यान का जन्म होता है। तीव्र आसक्ति वाले पुरुष में जन्म होता है। बहुत तीव्र कषाय वाले व्यक्ति में ध्यान का जन्म नहीं होता है। जिस व्यक्ति में संकल्प होता है, व्रत और नियम होता है, उसमें ध्यान का जन्म होता है। असंयमी मनुष्य में ध्यान का जन्म नहीं होता / जब मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण होता है तब ध्यान का जन्म होता है। -आचार्य महाप्रज्ञ वर विज्जा पमाक्खा लाडनूप जैन विश्व गरतीला जैन विश्व भारती लाडनूं-३४१३०६ (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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