Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 185
________________ १७४ तब होता है ध्यान का जन्म मनोबल प्राण, जो मन को संचालित कर रहा है, एक अलग बात है। ध्यान के द्वारा हमें उस गहराई में जाना है, जहां पहुंचकर हम चेतना और शरीर, के पुद्गल और चेतना के भेद को पकड़ सकें, उसे समाप्त कर सकें। ___ हम कायोत्सर्ग का प्रयोग करते हैं, शरीर शिथिल हो जाता है। शिथिलता से विश्राम मिल सकता है किन्तु वह मंजिल नहीं है। हमें पहुंचना वहां तक है, जहां शरीर और आत्मा को जोड़ने वाला ममत्व का सूत्र है, धागा है। शरीर के प्रति जो ममत्व जुड़ा है, वह ममत्व की ग्रंथि विमोचित हो जाए तो सही अर्थ में कायोत्सर्ग सिद्ध होगा। भगवान् महावीर ने दीक्षा के समय संकल्प किया था-'वोसट्टचत्तदेहे विहरिस्सामि'-मैं शरीर का व्युत्सर्ग और त्याग करता हूं। अस्पर्शयोग की भूमिका प्रेक्षाध्यान के शिविर में आधा घण्टा अथवा एक घण्टा का कायोत्सर्ग कराया जाता है। महावीर का बारह वर्ष का साधना-काल कायोत्सर्ग का काल था। आप लोग लेटकर करते हैं किन्तु महावीर खड़े-खड़े भी कायोत्सर्ग नहीं करते थे, चलते-चलते भी कायोत्सर्ग करते थे। एक ओर स्वयं चल रहे थे, दूसरी ओर कायोत्सर्ग चल रहा था। काया के प्रति उनका ममत्व छूट गया। वे निरन्तर कायोत्सर्ग में ही थे, चाहे चलते, बोलते, हाथ अथवा पैर को हिलाते। कायोत्सर्ग में बताया जाता है कि हाथ न हिले, पैर न हिले किन्तु महावीर का हाथ भी हिलता था, पैर भी चलते थे और कायोत्सर्ग भी साथ-साथ चलता था। हमें भी यहां तक पहुंचना है-बोलते समय भी कायोत्सर्ग, चलते समय भी कायोत्सर्ग और उठते-बैठते समय भी कायोत्सर्ग। यह स्थिति बनती है, तब सुरक्षा का प्रश्न समाहित हो जाता है। इस स्थिति में मूर्छा, भय, असुरक्षा की वृत्ति हमें छू भी नहीं पाती। हम अस्पर्श की भूमिका में पहुंच जाते हैं। गीता में अस्पर्श योग का विवेचन मिलता है। हम अस्पर्श की भूमिका में पहुंच जाएं तो वह हमारी नितान्त सुरक्षा की भूमिका होगी। ध्यान उस भूमिका की उपलब्धि का सर्वोत्तम पथ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194