Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 184
________________ मानवीय सम्बन्ध औ असुरक्षा की जड़ अपने भीतर रहना धर्म और बाहर जाना अधर्म । यदि यह चेतना जागृत होती तो असुरक्षा की बात नहीं होती, भय नहीं होता । भीतर कोई भय नहीं है । भय सारा बाहर में है। ध्यान शिविर में आए लोग इस हाल में बैठे हैं। यहां भय कहीं नहीं है किन्तु मन के एक कोने में भय बना हुआ हो सकता है । यह चिन्तन उभर सकता है मकान के ताला लगाकर आए हैं, कहीं चोर ताला न तोड़ डाले । कहीं कुटीरों में कोई घुस न जाए। कहीं घर में पीछे से कोई कुछ कर न दे। हम जानें या न जानें, स्थूलदृष्टि से न पकड़ पाएं किन्तु सूक्ष्म भावना के स्तर पर, अध्यवसाय के स्तर पर हर व्यक्ति में क्रोध, अभिमान, लोभ, भय, काम-वासना आदि निरन्तर सक्रिय बने हुए हैं । जिसको निमित्त मिला, वह व्यक्त हो गया और जिसे निमित्त नहीं मिला, वह अव्यक्त उपादान के रूप में विद्यमान रह गया । extra असुरक्षा की जो जड़ है, वह भीतर में है। जब तक वह नहीं मिटती, तब तक भय और असुरक्षा का यह चक्र बराबर चलता रहेगा । उसे मिटाने के लिए उपादान को समाप्त करना होगा और उसके लिए गहराई में जाना पड़ेगा। अगर पत्ते को तोड़ना है, फूल या टहनी को तोड़ना है तो कहीं गहरे में जाने की जरूरत नहीं है । थोड़ा-सा हाथ ऊंचा किया और पत्ता तोड़ दिया किन्तु अगर जड़ तक पहुंचना है तो बहुत गहरे में पहुंचना होगा । गहराई में जाएं Jain Education International १७३ ध्यान का मतलब है गहराई में जाना । ध्यान शिविर में बार-बार शरीर प्रेक्षा का प्रयोग कराया जाता है । इसका अर्थ केवल चमड़ी को देखना नहीं है, शरीर की गहराई में जाना है । श्वास प्रेक्षा के द्वारा केवल श्वास के प्रकम्पन को ही नहीं पकड़ना है, उसके साथ उस प्राण-शक्ति को पकड़ना है, जो श्वास का संचालन कर रही है। श्वास और श्वास- प्राण एक नहीं है। श्वास अलग है और श्वास-प्राण अलग है । जो बाहर से हवा ली जा रही है, ऑक्सीजन ली जा रही है, प्राणवायु ली जा रही है, वह श्वास है । श्वास को खींचने वाला एक अवयव है रेस्पीरेटरी सिस्टम । वह हर व्यक्ति के शरीर में होता है । उस श्वसन तंत्र को संचालित करने वाली जो शक्ति है, वह है श्वास- प्राण । ध्यान का मतलब इतना ही नहीं है कि केवल आते-आते श्वास को देखें । यह पहला स्थूल उपक्रम है । हमें वहां तक पहुंचना है, जहां हम श्वास-प्राण को पकड़ सकें । उस प्राण-शक्ति को पकड़ सकें और यह भेद कर सकें- यह श्वास है और यह श्वास को संचालित करने वाली शक्ति का केन्द्र है। श्वास- प्राण का केन्द्र है हमारे मस्तिष्क में । हम उच्चारण करते हैं, बोलते हैं, यह हमारी भाषा हो गई । भाषा अलग बात है, भाषा-प्राण अलग बात है। हम सोचते हैं, यह मन हो गया किन्तु मन अलग वस्तु है और I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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