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मानवीय सम्बन्ध और ध्यान
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नहीं दे सकती। आयु पूर्ण हो गई, मौत आ गई। किडनी खराब हो गई और जीवन बुझ गई I
की लौ
हमने देखा-छापर के चौरड़िया परिवार का एक व्यक्ति बहुत कार्य में लगा हुआ था। उन दिनों छापर में मर्यादा - महोत्सव होने वाला था । वह व्यवस्था समिति का अध्यक्ष था। सारा दायित्व ओढ़े हुए था । दर्शन के लिए आया। पांच मिनट बाद सुना वह व्यक्ति चल बसा। वह नीचे से ऊपर दूसरी मंजिल पर गया । पुनः नीचे नहीं उतर सका, केवल यह संवाद आया- 'माणक चौरड़िया नहीं रहा ।' विश्वास होना मुश्किल था, किन्तु अविश्वास भी नहीं किया जा सका। अचानक गुर्दा फेल हो गया और निधन हो गया। ऐसे ही एक व्यक्ति आया, बैठा था सामने । अचानक हार्ट फेल हो गया, चल बसा। सुरक्षा क्या काम देगी? असुरक्षा इतनी है कि जीवन लुट जाता है, आदमी चला जाता है। कोई किसी को मार देता है तो कहा जाता है - सुरक्षा की व्यवस्था नहीं थी, इसलिए मारा गया । किन्तु जो असुरक्षा भीतर बैठी है, उसकी ओर ध्यान नहीं जाता। ब्रेन हेमरेज हो जाए, हार्ट खराब हो जाए, लीवर काम करना बन्द कर दे तो क्या होगा? एक बड़ा व्यक्ति है । सुरक्षा की पूरी व्यवस्था है। बाहर सैकड़ों पुलिस के लोग मशीनगनें ताने हुए खड़े हैं, भीतर कोई जा नहीं सकता किन्तु भीतर के अवयवों ने काम करना बन्द कर दिया, मस्तिष्क ने काम करना बन्द कर दिया, आभामण्डल बिगड़ गया और इतनी बड़ी सुरक्षा के बीच बैठा आदमी चल बसा।
वह सुरक्षित है
हमने सुरक्षा - असुरक्षा को इतने स्थूल अर्थ में ले लिया कि एक अकारण भय का वातावरण पैदा कर दिया । यदि थोड़े गहरे में जाते और सचाई का पता लगाते तो यह निष्कर्ष प्रस्तुत होता-मरना और असुरक्षा- दोनों जुड़े हुए नहीं हैं। बहुत सुरक्षा में भी आदमी मर सकता है और बहुत असुरक्षा में भी आदमी जिन्दा रह जाता है । कुछ वर्ष पहले महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में भारी भूकम्प आया। छोटे-छोटे बच्चे मलबे में दब गए । जब मलबे को निकाला गया, दो तीन दिन बाद भी दो बच्चे जीवित निकल गये । उनकी कौन सुरक्षा कर रहा था ? सैकड़ों-हजारों आदमी मरे हुए थे । उनकी कौन असुरक्षा कर रहा था? हमने मरने के साथ सुरक्षा और असुरक्षा को जोड़ कर भारी भूल की है। वास्तव में हमारी सुरक्षा की भाषा यह होनी चाहिए- जो व्यक्ति अपनी चेतना के साथ जीता है, आत्मा के साथ जीता है, वह दुनिया में सबसे ज्यादा सुरक्षित है । जो अन्तश्चेतना के साथ नहीं जीता, केवल पदार्थ - चेतना के साथ जीता है, वह दुनिया में सबसे ज्यादा असुरक्षित है।
मूर्च्छा में जीने वाला दुनिया में कभी सुरक्षित नहीं हो सकता। उसका भय हमेशा बना रहेगा। व्यक्ति धन की सुरक्षा करता है। उसके लिए कितनी गोदरेज की
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