Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 180
________________ सुरक्षा और ध्यान १६९ क्या तुम्हारा डर मिट गया?' उसने कहा- 'वह डर तो मिट गया किन्तु एक नया डर पैदा हो गया। हमेशा यह डर बना रहता है कि कहीं ताबीज गुम न हो जाए।' जहां मूर्छा है वहां भय समाप्त नहीं होता। एक भय मिटता है तो दूसरा भय पैदा हो जाता है। एलोपैथिक दवा एक बीमारी मिटाने के लिए दी जाती है, वह बीमारी मिट जाती है, किन्तु उस दवा की एक प्रतिक्रिया होती है और दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है। एक बीमारी का मिटना और दूसरी बीमारी का पैदा होना-दोनों साथ जुड़े हुए हैं। एलोपैथी दवा बीमारी को मिटाएगी, किन्तु पारिपार्श्विक खतरा भी उसके साथ जुड़ा हुआ है। मूल हेतु है-मूर्छा । यदि हम अध्यात्म को समझना चाहें, निश्चय नय अथवा वास्तविकता में जाना चाहें, तो हमें मूर्छा को पकड़ना पड़ेगा। जगत् को हम दो भागों में बांट दें-एक धार्मिक अथवा मोक्ष का जगत् और एक व्यावहारिक अथवा सांसारिक जगत् । यह परिभाषा की जा सकती है-जहां-जहां मूर्छा वहां-वहां संसार। जहां-जहां मूर्छा का अभाव, वहां-वहां अध्यात्म अथवा मोक्ष। सबसे बड़ी समस्या है मूर्छा। पदार्थ के प्रति इतना आकर्षण पैदा हो गया कि छूट नहीं पा रहा है। इन्द्रियों ने पदार्थ के साथ ऐसा सम्बन्ध स्थापित कर लिया और मन की चंचलता का ऐसा योग मिल गया कि आदमी इस मूर्छा के चक्रव्यूह में उलझता चला जा रहा है। जीवन का नया आयाम ___ इस चक्र से निकलने के लिए ध्यान की जरूरत है। ध्यान से चंचलता कम होती है। चंचलता कम होती है तो एक नये वातावरण में जीने का मौका मिलता है। चंचलता हमेशा व्यक्ति को पदार्थ जगत् की ओर खींचती है। जैसे ही चंचलता समाप्त होती है, नई दुनिया हमारे सामने आ जाती है। शरीर की चंचलता मिटे, वाणी और मन की चंचलता समाप्त हो जाए, निर्विकल्प स्थिति में पहुंच जाए तो जीवन का नया आयाम उद्घाटित हो जाए। उस स्थिति में नया दृष्टिकोण, नई दिशा, नई दुनिया, नई दृष्टि-सारा वातावरण नया बनता है, जिस स्थिति का हमें अनुभव नहीं है, वह स्थिति सामने आती है। हमारा सारा अनुभव इन्द्रिय-जन्य है। जो इन्द्रियों से पैदा हुआ है, वह हमारा अनुभव है। हम किसी वस्तु को अच्छा अथवा बुरा बताते हैं, इसका हेतु हमारी इन्द्रियां हैं। कोई चीज खाई, अच्छी लगी। हमने कहा-अच्छी वस्तु है। कोई चीज खाई, और खराब लगी, हम कहते हैं-यह खराब वस्तु है। अच्छा और खराब होने का मानदण्ड क्या है? किसी वस्तु को देखा, आकृति को देखा, वह हमें प्रिय लगती है तो हम कहते हैं-अमुक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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