Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 176
________________ मानवीय सम्बन्ध और ध्यान १६५ आचरण में, कोई अंतर नहीं दिखाई देता। यदि ध्यान के द्वारा यह भेदरेखा नहीं खीची जाती है तो बात समझ में नहीं आती। ध्यान के द्वारा अवश्य ही आवेगों में परिवर्तन आना चाहिए। शामक औषधि है ध्यान मनश्चिकित्सकों के सामने एक प्रश्न आया-जो लोग बहुत ज्यादा आवेग में आते हैं, वे पागल बनने की स्थिति में चले जाते हैं। उस पागलपन को कैसे रोका जाए? मनश्चिकित्सकों ने एक समाधान ढूंढा, शामक औषधियों का प्रयोग किया। पागलपन को रोकने के लिए शामक औषधियां दी जाती हैं। उससे पागलपन की स्थिति में परिवर्तन आता है और वह शांत हो जाता है। बहुत तेज आवेग, जिस पर कंट्रोल नहीं रहता, आदमी को पागलपन की दशा में ले जाता है। ट्रॅक्वेलाइजर का प्रयोग करते हैं, आवेग का नियमन हो जाता है। ध्यान शायद सबसे बड़ा ट्रॅक्वेलाइजर है। इसके बराबर कोई ट्रॅक्वेलाइजर नहीं है। जो गोलियां ली जाती हैं, थोड़ी देर बाद उनका असर समाप्त हो जाता है, किन्तु ध्यान एक ऐसी शामक औषधि है, जिसका असर स्थाई बनता है। यह पागलपन रोकने का एक सुन्दर उपाय है। योग का एक शब्द है-विक्षेप, आवेग-जनित चंचलता। इस स्थिति में शारीरिक परिवर्तन भी घटित होते हैं। उन शारीरिक परिवर्तनों की आज मनोविज्ञान ने बहुत विशद व्याख्या की है। क्रोध भी आया तो इतना शांत आया कि मन की थोड़ी-सी बात एक तेजी के साथ कह दी और क्रोध शांत हो गया। क्रोध करना भी एक कला है। क्रोध में भी फूहड़पन नहीं होना चाहिए। यह क्रोध की कला नहीं है कि क्रोध आए और हाथ कांपने लगे, शरीर कांपने लग जाए, होठ फड़कने लग जाए। व्यक्ति कहता है कुछ और निकलता है कुछ। कोई भान ही नहीं रहता। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि व्यक्ति आवेश में स्वयं अपनी छाती पर मुक्का मारने लग जाता है। कभी अपना होठ काट लेता है, कभी अपने बाल नोंचने लग जाता है। कभी-कभी क्रोध में आकर आग की शरण में चला जाता है, आत्मदाह की बात भी कर लेता है। ये सारी स्थितियां क्रोध की कला न जानने के कारण बनती हैं। इन पर नियंत्रण करने के लिए ध्यान बड़ा प्रयोग है। व्यक्ति ध्यान की स्थिति में चला जाता है तो भयंकरता की स्थिति समाप्त हो जाती है। हम आवेगों को तीन श्रेणियों में बांट दें-तीव्र, मन्द और अभाव । एक आदमी ऐसा होता है, जिसका आवेग इतना तीव्र और भयंकर होता है कि जब आवेग आता है, कोई भान ही नहीं रहता। एक आदमी ऐसा है जिसे आवेग आता है, पर तीव्र और स्थाई नहीं रहता। पत्थर की लकीर मिटती नहीं है, बहुत गाढ़ बन जाती है। पानी या बालू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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