Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 169
________________ १५८ तब होता है ध्यान का जन्म असत् से सत्प्रवृत्ति की ओर तीन शब्दों को याद रखना जरूरी है-असत् प्रवृत्ति, सत् प्रवृत्ति और निवृत्ति। असत् प्रवृत्ति है अवांछनीय प्रवृत्ति । सत् प्रवृत्ति है अच्छी प्रवृत्ति और निवृत्ति है अप्रवृत्ति। प्रवृत्ति न करें, यह संभव नहीं है। प्रवृत्ति किए बिना जीवन नहीं चलता। असत् प्रवृत्ति समस्याओं को जन्म देती है और उससे सारी समस्याएं उलझती हैं। धर्म का उद्देश्य है असत् प्रवृत्ति से सत् प्रवृत्ति की ओर प्रस्थान करना। इस संदर्भ में यह वैदिक सूत्र बहुत संगत हैतमसो मा ज्योतिर्गमय । असतो मा सद्गमय । मृत्योर्मा अमृतं गमय । असत् से सत् की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर जाएं। इसके लिए चित्त की शुद्धि जरूरी है और चित्त की शुद्धि के लिए ध्यान जरूरी है। इस समग्र पृष्ठभूमि में हम ध्यान का मूल्यांकन करें तो ऐसा लगेगा-जीवन में जितनी-जितनी अनिवार्यताएं हैं, आवश्यकताएं हैं, उनमें ध्यान सबसे पहली अनिवार्यता है। वस्तस्थिति यह है-धर्म और ध्यान को नम्बर सबसे बाद में मिलता है। किसी भी आदमी से पूछा जाए-धर्म-ध्यान करते हो? उत्तर मिलेगा--बहुत व्यस्त हूं। मुझे समय ही नहीं मिलता। रोटी खाने के लिए, दिन में पांच-सात बार नाश्ता करने के लिए समय है। स्नान करना, व्यापार करना, गप्पे हांकना, ताश-चौपड़ खेलना-सबके लिए समय है। केवल समय नहीं है धर्म और ध्यान करने के लिए। जो प्राथमिक अनिवार्यता है, उसको अंतिम सूची में नम्बर दे दिया अथवा बिल्कुल स्थान दिया ही नहीं। इस स्थिति से जब तक आदमी नहीं उबरेगा तब तक समाज का कल्याण नहीं हो सकता। शुभ संकेत प्रसन्नता की बात है कि अब युवा लोग ध्यान में रुचि लेने लगे हैं। कुछ वृद्ध लोग कहते हैं-कितना अच्छा होता, यदि आज से पचास वर्ष पहले ध्यान चलता। एक अस्सी वर्ष के भाई ने कहा-अब हमारी शक्ति नहीं रही। जब हमारी शक्ति थी, तब ध्यान चला नहीं था। अब ध्यान चला है तो उसे करने की हमारी शक्ति नहीं है। यह शिकायत आज के युवा नहीं कर सकते। वे यह नहीं कह सकते कि ध्यान नहीं था, किन्तु वे यह तो कह सकते हैं कि हमने ध्यान किया नहीं। यह एक शुभ संकेत है- ध्यान के प्रति रुचि जागी है, नई दृष्टि और नई प्रेरणा जागी है। हम इसका ठीक मूल्यांकन करें। यह मूल्यांकन हमारे लिए बहुत उपयोगी होगा, भावी समाज की कल्पना के लिए, नए समाज की संरचना के लिए एक ऐसा मील का पत्थर सिद्ध होगा, जो सदा आदमी को नई दिशा देगा, सही ढंग से जीवनयापन करने की पद्धति पुरस्कृत कर पाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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