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प्रेक्षाध्यान के शिविर में ध्यान के प्रयोग के साथ-साथ शरीर विज्ञान का प्रशिक्षण भी चलता है। प्रश्न हो सकता है - शरीर - विज्ञान का प्रशिक्षण एक डॉक्टर के लिए तो आवश्यक हो सकता है पर ध्यान करने वाले व्यक्ति के लिए वह क्यों जरूरी है ? उसे शरीर विज्ञान का प्रशिक्षण क्यों दिया जाता है ?
आवेग और ध्यान
वैज्ञानिक युग में हर बात की वैज्ञानिक दृष्टि से मीमांसा होती है । प्रत्येक विषय में ये प्रश्न पूछे जाते हैं-क्यों करें? कैसे करें ? क्या परिणाम होगा? आदि -आदि जिज्ञासाएं सामने आती हैं। ध्यान क्या है ? ध्यान क्यों करें? कैसे करें? कब करें? ये सब बातें ज्ञातव्य हैं।
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शरीर को जाने बिना ध्यान की पूरी बात समझ में नहीं आती। हमारा शरीर इतना बड़ा कारखाना है, इतना बड़ा यंत्र है कि उसकी सारी यांत्रिक प्रक्रियाएं ठीक से समझ ली जाएं तो आदमी बहुत आगे बढ़ सकता है और वे समझ न आएं तो अवरोध भी आ सकता है। एक उदाहरण लें क्रोध का । आदमी को क्रोध आता है । यह बात स्पष्ट है, पर क्रोध क्यों आता है? और आता है तो फिर रुक क्यों जाता है? वह असीम क्यों नहीं हो जाता? क्या इसका उपचार किया जा सकता है? आज के मनोवैज्ञानिकों ने, शरीरशास्त्रियों ने इन विषयों की बहुत छानबीन की है । क्रोध आ का जो केन्द्र है, वह है हमारा मस्तिष्क । सारा संचालन मस्तिष्क के द्वारा हो रहा है । अच्छी और बुरी-सारी भावधाराएं मस्तिष्क में पैदा हो रही हैं। क्रोध करना, यह भाव भी मस्तिष्क से आ रहा है और क्रोध न करना, यह भाव भी मस्तिष्क से आ रहा है 1 क्रोध का उद्दीपन भी होता है और क्रोध का नियमन भी होता है । हाइपोथेलेमस का एक भाग क्रोध को प्रकट करता है तो साथ-साथ दूसरा भाग क्रोध का नियमन करता है। वह कहता है - इतना मत करो, अभी मत करो । क्रोध की कोई घटना घटी। हाइपोथेलेमस के उस भाग को सूचना • मिलेगी - नहीं, अभी क्रोध करने का समय ठीक नहीं है। जरा ठहरो, रुको। इस संकेत से आदमी रुक जायेगा । यदि आदमी क्रोध करना पुनः शुरू कर देगा तो फिर सूचना
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