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तब होता है ध्यान का जन्म
देखा। सर्कस की समाप्ति के बाद महिला ने पूछा - 'कहो, कैसा लगा ।' एक अन्धा लड़का बोला- 'मुझे तो बहुत अच्छा लगा पर मेरा जो बहरा साथी बैठा है, यह बेचारा ऐसे ही रह गया। मुझे इस बात का दुःख है कि यह कुछ लाभ नहीं ले सका ।'
'अरे ! तुम कहना क्या चाहते हो?'
'बहिन जी ! यह कुछ भी नहीं सुन सका, न सिंह की गर्जना को सुन सका, न हाथी की चिंघाड़ों को सुन सका, न मधुर गीतों को सुन सका । इसके पल्ले कुछ भी नहीं पड़ा, इसका मुझे बड़ा दुःख है । '
यह है सहानुभूति का भाव । स्वयं उसे पता नहीं है कि क्या हो रहा है। उसने यह नहीं सोचा कि मैं नहीं देख सका पर उनके मन में यह पीड़ा उभरी - मेरा साथी बहरा है, वह कुछ भी नहीं सुन सका । ऐसा सहानुभूति का भाव, एक संवेदना का भाव जाग जाए तो फिर व्यक्ति किसी के प्रति अन्याय नहीं कर सकता, किसी का शोषण भी नहीं कर सकता ।
कषाय और संवेदनशीलता
ध्यान का एक परिणाम है कषाय की शांति । जैसे-जैसे कषाय कम होगा, संवेदनशीलता जागृत होती चली जाएगी। यदि ध्यान करने वाले व्यक्ति में संवेदनशीलता नहीं जागती है तो मान लेना चाहिए कि उसका ध्यान सधा नहीं है। ध्यान का अनिवार्य परिणाम है-संवेदनशीलता का, करुणा का जाग जाना। हमारे सामने सामाजिक समता का बहुत बड़ा प्रश्न है। उसके लिए व्यवस्थागत बहुत उपाय किये गये किन्तु वे पूरे सफल नहीं हो रहे हैं । इसका कारण है- जब तक समाज में संवेदनशीलता जागृत नहीं होगी तब तक व्यवस्थागत परिवर्तन सफल नहीं होंगे। इस प्रश्न को सुलझाने के लिए हमें ध्यान का आश्रय भी लेना चाहिए । यह एक बहुत बड़ा समाधान है। परिवर्तन के इतने प्रयोग किये जाते हैं तो यह प्रयोग क्यों न किया जाए और उसे भी व्यापक स्तर पर क्यों न किया जाए?
अभियान साक्षरता का
सरकार सोचती है- हमारे देश में कोई निरक्षर न रहे, सब साक्षर बनें । साक्षरता का अभियान चलाया जाता है । क्या अक्षर पढ़ने मात्र से, हस्ताक्षर कर देने मात्र से कोई बहुत बड़ी सफलता मिल जाएगी ? यह एक चिंतन है, इस चिंतन को बुरा नहीं कहा जा सकता। अनौपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम चलता है तो प्रौढ़ लोग भी पढ़ने लग जाएंगे। बात तो हास्यास्पद - सी लगती है । छोटों पर इतना ध्यान नहीं है और प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के प्रत्यन किए जा रहे हैं। छोटे अनक्षर बच्चों की फौज और तैयार हो जाएगी । होना तो यह चाहिए था - अब जन्म लेने वाला कोई भी निरक्षर न रहे तो
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