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तब होता है ध्यान का जन्म को अपने विवेक के आधार पर चलाता है। जिसका विवेक जाग जाता है, उसके संवेग सो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति तटस्थ होता है। जिसका संवेग जागता है, उसका विवेक सो जाता है। ऐसा व्यक्ति पक्षपाती होता है और पक्षपाती कभी अच्छी व्यवस्था नहीं दे सकता।
तटस्थ होने के लिए ध्यान आवश्यक है। ध्यान न करने वाला व्यक्ति तटस्थ नहीं हो सकता। कारण बहुत स्पष्ट है कि अप्रभावित रहना उसी व्यक्ति के लिए संभव है, जो ध्यान में लीन है। दो प्रकार की मनोवृत्तियां हैं-एक प्रभावित होने की और दूसरी अप्रभावित रहने की। किसी घटना को देखें और प्रभावित न हों, यह कैसे संभव है? लोग टी.वी. देखते हैं, नाटक देखते हैं, सिनेमा देखते हैं। जहां करुण दृश्य आता है, हजारों लोग रो पड़ते है। उनका घटना से कोई संबंध नहीं है फिर भी रोते हैं। इसलिए कि वे प्रभावित हो जाते हैं, उनकी संवेदना जाग जाती है।
एक वरिष्ठ साहित्यकार नाटक देख रहा था। नाटक में एक प्रसंग आया-एक व्यक्ति खलनायक को जूता मार रहा है। जैसे ही प्रसंग आया, देखने वाला साहित्यकार खड़ा हुआ। जो मारने वाला था, उसको जूता जड़ दिया। वह इतना प्रभावित हो गया कि उस घटना के साथ बह गया। उसे यह पता नहीं चला कि यह मात्र नाटक है। निदर्शन है हवा
आदमी बहुत प्रभावित होता है। घटना से प्रभावित होता है, वातावरण से प्रभावित होता है। जैसा वातावरण मिला, वैसा बन गया। बर्फ पड़ी, हिमपात हुआ तो हवा बहुत ठण्डी बन गई, शीत लहर बन गई। सूरज की बहुत तेज गर्मी मिली, वह लू बन गई। जनता को तपाने लग गई। वह ठण्डक भी करने लग जाती है, तपाने भी लग जाती है। आदमी का दिमाग भी ऐसा ही होता है। कोई सुखद घटना हुई, आदमी बहुत राजी हो जाता है। कोई दु:खद घटना हुई, आदमी बहुत उत्तेजित हो जाता है। दिमाग का एक ऐसा प्रकोष्ठ है, जो बाहरी वातावरण से प्रभावित होता है। यदि हम मस्तिष्क के उस प्रकोष्ठ को नियंत्रित कर सकें, शिक्षित कर सकें कि वह अप्रभावित रहे, प्रभावित न हो। ऐसा होने पर वह घटना को जानेगा, देखेगा। परिस्थिति में जीएगा, श्वास लेगा पर उससे अप्रभावित रहेगा। यह अप्रभावित रहने की स्थिति केवल ध्यान के द्वारा ही संभव है। अप्रभावित होने की मुद्रा
ध्यान का मतलब ही है स्थिरता। व्यक्ति ध्यान की मुद्रा में बैठता है तब निर्देश दिया जाता है-आंखें बंद, शरीर स्थिर, कायोत्सर्ग की मुद्रा। शरीर की स्थिरता, शरीर की शिथिलता, आंख बंद और इन्द्रियां शांत-यह है अप्रभावित होने की मुद्रा । प्रभावित होने की मुद्रा है-चंचलता। आदमी जितना ज्यादा चंचल होगा उतना ज्यादा प्रभावित होगा। शरीर की चंचलता, इंन्द्रियों की चंचलता और मांसपेशियों का तनाव-ये सब प्रभावित
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