Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 157
________________ १४६ तब होता है ध्यान का जन्म आज भी जीवित हैं संस्कार ___अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने रंगभेद को मिटाने का बहुत प्रयास किया। हिन्दुस्तान में भी जातिवाद को मिटाने का बहुत प्रयत्न किया गया। महात्मा गांधी ने अपनी सारी शक्ति से यह प्रयत्न किया कि जातिभेद मिट जाए, छुआछूत मिट जाए। पूज्य गुरुदेव ने अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से जातिगत विषमता को दूर करने का काफी प्रयत्न किया। इन सारे प्रयत्नों के बावजूद भी करोड़ों-करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिनमें जातिवाद का प्रबल संस्कार है, वर्णवाद का प्रबल संस्कार है और रंगभेद का संस्कार भी कम नहीं है । शोषित और शोषक वर्ग आज भी जीवित है। एक मालिक अपने कर्मचारी को, अपने नौकर को कभी भी समानता का स्थान देने को तैयार नहीं है। यह शोषक की श्रेणी आज भी बराबर चल रही है। सब कुछ जीवित है। इस स्थिति में संघर्ष होना स्वाभाविक है। विषमता का परिणाम संघर्ष विषमता का अनिवार्य परिणाम है। जहां विषमता है, वहां संघर्ष न हो, यह संभव नहीं है। जहां संघर्ष है वहां सामाजिक शांति नहीं हो सकती। इस सारे चक्र पर हम विचार करें और सामाजिक समता पर ध्यान दें तो हमारे सामने एक बड़ा उपाय आता है और वह उपाय है-ध्यान । ध्यान की चेतना का विकास किया जाए तो सामाजिक समता को बहुत बल मिल सकता है। ___ हम मूल प्रश्न पर आएं-आखिर सामाजिक विषमता को पैदा कौन करता है? उसे पैदा करने वाला तत्त्व मनोविज्ञान की भाषा में संवेग है और कर्मशास्त्र की भाषा में कषाय है। कषाय विषमता को पैदा कर रहा है, संघर्ष को जन्म दे रहा है। कषाय विषमता का मूल कारण है। कषाय पर नियंत्रण किये बिना संभव नहीं है कि सामाजिक विषमता समाप्त हो जाए। मुख्यत: अहंकार और लोभ-ये दो कषाय सामाजिक विषमता के लिए बहुत जिम्मेवार हैं। शराब पीकर आदमी नशे में उन्मत्त होता है, किन्तु अहंकार के नशे में उससे कम उन्मत्त नहीं होता। शराब से भी ज्यादा भयंकर नशा' है अहंकार का। उसके कारण एक मद पैदा होता है और वह विषमता को पैदा करता है। दूसरा कारण है-लोभ । यह भी सामाजिक विषमता को जन्म देता है। पहला सोपान ___अहंकार और लोभ-इन दो संवेगों पर नियंत्रण करना सामाजिक समता का पहला सोपान है। बड़ा कठिन है इन पर नियंत्रण करना, क्योंकि आदमी संवेगों के आधार पर चलता है। जैसा-जैसा वातावरण अथवा परिस्थिति आती है, संवेग उभरते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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