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सामाजिक समता और ध्यान
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प्रकार का होता है, उसके कारण अभिवृत्तियां बनती रहती हैं और सामाजिक विषमताएं भी होती रहती हैं ।
खाई बनी रही
हम पांच हजार वर्ष पहले का इतिहास देखें, पता चलेगा जो वर्ग का मुखिया बन गया, आगे आ गया, वह आभिजात्य बन गया। उसके अहंकार ने असमान जातीय को हमेशा नीचे रखने का प्रयत्न किया इसीलिए एक खाई बराबर बनी रही। एक बड़ा और एक छोटा बनता रहा। चाहे वह जाति के नाम पर आर्थिक विषमता के आधार पर अथवा साप्रदायिकता के आधार पर बना । सामाजिक स्थिति में यहां यह नियम बन गया - अमुक जाति का एक आदमी भी इस गली से नहीं जा सकता क्योंकि आभिजात्य वर्ग के लोग इस गली से जाते हैं। अमुक वर्ग का आदमी इस सड़क से नहीं जा सकता, उस सड़क पर उसकी छाया भी नहीं पड़नी चाहिए । गोरे और काले एक कार में, एक बस में, एक साथ नहीं बैठ सकते । ट्रेन के एक डिब्बे में एक साथ नहीं बैठ सकते। एक कुत्ता साथ बैठ सकता है किन्तु एक आदमी साथ नहीं बैठ सकता । मनुष्य का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है ? इस सामाजिक विषमता के आधार पर घृणा का भाव बढ़ता चला गया । एक आदमी के मन में दूसरे आदमी के प्रति इतनी घृणा हो गई कि यदि एक काला आदमी गोरों की बस्ती में चला जाए तो शायद जीवित वापस न आए। इससे बड़ा अन्याय क्या हो सकता है? आज हम सामाजिक समता की बात करते हैं, न्याय की बात करते हैं, किन्तु अधिक से अधिक सामाजिक समता की बात करने वालों में भी यह काले और गोरे का भेद मिटा नहीं है । विकसित राष्ट्रों में, जो बहुत प्रबुद्ध और वैज्ञानिक कहलाते हैं, जिन्होंने खोजें की हैं और जो पूरी मानव जाति के साथ न्याय करने का दावा कर रहे हैं, उन लोगों में भी यह काले और गोरे का भेद प्रखर बना हुआ है। वहां काले लोगों को मारने में भी शायद संकोच नहीं होता । उन्हें एक प्रकार से इतनी हीनता की दृष्टि से देखते हैं कि वे काले आदमी को आदमी मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं ।
हिन्दुस्तान में जातिवाद का प्रश्न बहुत प्रखर रहा । काले-गोरे का तो प्रश्न ही नहीं; क्योंकि हिन्दुस्तानी लोग कालों की श्रेणी (ब्लेक बेल्ट) में ही आते हैं । वे गोरे माने नहीं जाते इसलिए यह रंगभेद का प्रश्न भारत में नहीं चला, किन्तु जातिवाद बहुत प्रखरता से चला। इससे समाज में विषमता बढ़ती चली गई और उसके साथ-साथ यह भेद वाली बात भी जुड़ गई ।
वर्गभेद, जातिवाद, रंगवाद- ये सब ऐसी स्थितियां हैं, जो सामाजिक विषमता पैदा कर रही हैं । प्रश्न है - यह कैसे मिटे ? इसके लिए कानून का सहारा लिया गया । हिन्दुस्तान में भी लिया गया, बाहर भी लिया गया।
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