Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 152
________________ १४१ तनाव और ध्यान बोला-मैं अपने भाई-बहिनों को खाने के लिए ले आऊंगा। मित्रता की भ्रांति टूट गई। सबने कहा-कितना स्वार्थी है। केवल अपना व्यक्तिगत स्वार्थ देखता है। जब ध्यान करना आदमी शुरू करता है तो भ्रांतियां टूटनी शुरू हो जाती हैं। व्यक्ति के मन में एक भ्रांति यह रहती है कि सुख खाने में है। अच्छा खाने में सुख तब मिलेगा जब शाक में खूब मिर्च-मसाले डालेंगे। जब व्यक्ति शिविर में ध्यान करने आता है, तब यह भ्रांति टूट जाती है। जब भीतर झांकना शुरू करता है तब लगता है-अरे ! सुख तो भीतर है। एक घण्टा ध्यान किया और अपूर्व आनन्द आया। प्रश्न हो सकता है-उस समय क्या मिला? क्या मसालेदार खाद्य पदार्थ मिले? मिठाइयां या चटपटी चीजें मिलीं? कुछ भी नहीं मिला फिर आनन्द कहां से आया? वह आनन्द बाहर से नहीं, भीतर से फूटा है। यह सचाई ध्यान से उपलब्ध होती है। जब यह सचाई सामने आती है, पदार्थ में सुखारोपण की भ्रांति टूट जाती है। ____ ध्यान भ्रांति को तोड़ने और सचाई को उपलब्ध करने का साधन है। जो व्यक्ति केवल बाह्य जगत् में ही जीता है, अन्तर्जगत् में कभी प्रवेश नहीं करता, उसका जीवन अच्छा नहीं होता। अच्छा जीवन वह होता है, जिसमें इन द्वन्द्वों को सहने की शक्ति होती है। समता व्यक्तिगत है। इसका दूसरे से कोई संबंध नहीं है। लाभ-अलाभ आदि स्थितियों में सम रहना, एक जैसा रहना, हमारी व्यक्तिगत समता है। यह व्यक्तिगत समता जैसे-जैसे बढ़ती है, तनाव कम होता चला जाता है। मैं मानता हूं-एक साथ तनाव के चक्र को तोड़ देना बड़ा कठिन है। क्योंकि मस्तिष्क के दूसरे प्रकोष्ठ को हमने इतना शिक्षित कर रखा है कि वही-वही बात हमारे सामने बार-बार आती है। यह सामान्य प्रकृति है। इसमें कोई अपवाद ढूंढ़ना भी मुश्किल है। लाभ हुआ और वह बहुत खुश हो जाएगा। किसी से कुछ कराना है तो उसकी प्रशंसा कर दो, न होने वाला काम भी बन जाएगा और थोड़ी-सी निंदा कर दो, बनने वाल काम भी बिगड़ जाएगा। इस सामान्य प्रकृति से बचने वाले लोग विरल होते हैं। कहां से आता है यह स्वर ! शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास को एक किसान ने पीट दिया। यह प्रश्न शिवाजी के सामने आया। किसान ने सोचा-अब तो फांसी की सजा ही मिलेगी। समर्थ रामदास बोले-शिवा ! इसने मुझे पीटा है, दण्ड मैं दूंगा। तुम्हें इसे दंड देने का अधिकार नहीं है।' शिवाजी बोले-'आपकी जैसी मर्जी।' रामदास ने कहा-'शिवा ! इस किसान को पांच बीघा जमीन और दे दो।' सब आश्चर्य में पड़ गए, बोले-'यह क्या दण्ड दिया आपने?' समर्थ रामदास ने कहा-बचारा गरीब है। यदि गरीब नहीं होता तो एक गन्ने के टुकड़े के लिए मुझे नहीं पीटता। इसे पांच बीघा जमीन दे दो फिर यह किसी को पीटेगा नहीं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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