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तब होता है ध्यान का जन्म
पाया, उतना बहुत कम लोगों के जीवन में होता होगा पर उन पर कोई असर नहीं हुआ। उस दार्शनिक संत की निंदा का स्वर बहुत दिन तक चलता रहा। एक व्यक्ति ने पूछ लिया-दार्शनिक महोदय ! आपकी इतनी निंदा होती है। क्या आपको गुस्सा नहीं आता? आपमें हीनभावना नहीं आती?' दार्शनिक ने बहुत मार्मिक उत्तर दिया-'भैया ! जो निंदा होती है, वह मेरे पास आती है किन्तु उस समय मैं अपने आप को इतना ऊंचा उठा लेता हूं कि वह मेरे पास पहुंच ही नहीं पाती। मुझमें हीनभावना कैसे आएगी?'
जिस व्यक्ति ने अपने आपको ऊंचा उठा लिया, उस तक निंदा या प्रशंसा की बात पहुंच ही नहीं पाती। उसमें कैसे अहंकार आएगा और कैसे हीनभावना जागेगी। ऊंचा उठाने का तात्पर्य है-मस्तिष्क को इस प्रकार साध लेना कि वह दोनों स्थितियों में एकरूप रह सके।
ये पांच द्वन्द्व हैं, अनुकूलता और प्रतिकूलता के संवेदन को जन्म देने वाले घटक तत्त्व हैं। अनुकूलता और प्रतिकूलता की परिस्थितियां तनाव पैदा करने वाली हैं। पूरा समाज इन परिस्थितियों के कारण तनाव को भोग रहा है। इन परिस्थितियों के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदल जाए, उस दृष्टिकोण से मस्तिष्क प्रशिक्षित हो जाए तो समस्या का समाधान सामने दिखाई देगा। टूटती हैं भ्रांतियां
___ ध्यान का मतलब है सचाइयों का अनुभव करना, सचाइयों को जानना। जब तक हम भीतर में नहीं जाएंगे, हमें सचाइयों का पता नहीं चलेगा। बाहर में जो सचाइयां प्रतीत होती हैं, उनके साथ बहुत भ्रांति पैदा हो जाती है। उपाध्याय यशोविजयजी ने लिखा-'जिस व्यक्ति ने अपने आप को नहीं देखा, आत्मा को नहीं देखा, उसकी पदार्थ के प्रति होने वाली भ्रांति कभी टूटेगी नहीं। उस व्यक्ति की पदार्थ के प्रति भ्रांति टूटती है, जिसने अपने आप को देखा है।' जब हम अपनी आत्मा को जानने की दिशा में आगे बढ़ेंगे तब हमारी पदार्थ विषयक भ्रांतियां टूटेंगी। हमारा प्रशिक्षण अलग प्रकार का बन जाएगा, मस्तिष्क को नई जानकारियां मिलेंगी। जब तक पदार्थ के जगत् में ही रहेंगे, अपने भीतर झांकने का प्रयत्न नहीं करेंगे तब तक भ्रांतियां बढ़ती ही चली जाएंगी।
पांच मित्र थे। वे सब यह मानते थे-भई ! हमारी गाढ़ मित्रता है, हम सब एक-दूसरे के सहयोगी हैं। सब परार्थ दृष्टि वाले हैं। स्वार्थी कोई नहीं है। एक दिन उत्सव का प्रसंग था। एक मित्र ने कहा-कितना अच्छा हो, आज खीर बना लें। सबने कहा-प्रस्ताव सुन्दर है। एक बोला-चावल मैं ले आऊंगा। दूसरा बोला-दूध मैं ले आऊंगा। तीसरा बोला-चीनी मैं ले आऊंगा, चौथा बोला-चूल्हा और ईंधन मैं ले आऊंगा। पांचवां मित्र मौन रहा। सबने पूछा-बोलो, तुम क्या लाओगे। पांचवां मित्र
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