Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 146
________________ तनाव और ध्यान १३५ वह प्रशिक्षण के लिए ध्यान बहुत उपयोगी है । जो शिक्षा आज चल रही है, तनाव को विसर्जित करने की शिक्षा नहीं है। वह उस मस्तिष्कीय प्रकोष्ठ को प्रशिक्षित करने की शिक्षा नहीं है, जो तनाव का जनक है। आज की शिक्षा व्यक्ति को तार्किक और बौद्धिक बनाती है। अधिक तार्किकता और बौद्धिकता कभी-कभी तनाव भी पैदा कर देती 1 तनाव क्यों पैदा होता है? मन में कोई एक बात आ गई, भावना में कोई बात समा गई और तनाव पैदा हो गया । शारीरिक तनाव शारीरिक श्रम से पैदा हो जाता है । थोड़ा विश्राम करते हैं, मिट जाता है । जटिल है मानसिक तनाव और उससे भी अधिक जटिल है भावात्मक तनाव। इन दोनों तनावों को मिटाने के लिए मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना आवश्यक है। इस संदर्भ में धर्म का बहुत बड़ा उपयोग है। धर्म का एक शब्द है समता। आजकल बहुत क्षेत्रों में समता शब्द चलता है । यह राजनीति के क्षेत्र में भी चलता है किन्तु यह मूल शब्द है धर्म का । इसका आविष्कार धर्म के लोगों ने किया था । समता का तात्पर्य है - अनुकूल और प्रतिकूल, सर्दी और गर्मी - दोनों प्रकार की स्थितियों में सम रहना। गर्मी है, आदमी कमरे में आता है और सीधा बटन पर हाथ जाता है पंखा चलाने के लिए। वह एक मिनट के लिए गर्मी को सहन नहीं कर सकता । जो व्यक्ति अपने जीवन में सर्दी और गर्मी को सहन नहीं कर सकता, वह मजबूत आदमी नहीं बन सकता। ऐसा कमजोर रह जाता है कि एक ही चपेट में वह बीमार हो जाता है। बरसाती, तूफानी या बर्फीली हवा की चपेट में आते ही जुकाम से पीड़ित हो जाता है । उसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है । अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां एक प्रश्न है - अनुकूल परिस्थितियां कौन सी हैं, जो तनाव पैदा करती हैं? लाभ, सुख, जीवन, प्रशंसा और सम्मान - ये पांच अनुकूल परिस्थितियां हैं। मनचाहा लाभ हो गया, आदमी बहुत खुश हो जाता है। सुख-सुविधा मिलती है तो आदमी बहुत खुश होता है । किसी ने कह दिया- तुम अभी पचास वर्ष और जीओगे, तुम्हारी आयु लम्बी है, जीवन अच्छा है । यह सुनकर वह बहुत खुश होता है। यदि कहा जाए - तुम जल्दी मर जाओगे तो उस पर क्या बीतती है ? वह अधमरा-सा हो जाता है। किसी ने दो शब्द प्रशंसा के कहे, आदमी फूल जाता है । सम्मान मिलता है, सुख होता है । ये अनुकूलता की स्थितियां हैं। अलाभ, दु:ख, मरण, निन्दा और अपमान - ये पांच प्रतिकूलता की स्थितियां हैं। धर्म का अर्थ है - इन परिस्थितियों में सम रहना। जहां विषमता आई, धर्म खण्डित हो गया। दुनिया में ऐसे आदमी कम हैं, जो इन परिस्थितियों में सम रहे सकें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194