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तब होता है ध्यान का जन्म उस साधना की विधि यह है-हाथ की हथेली पर पानी डाला, वह पानी नीचे चला गया, उस आर्द्र हाथ की रेखा सूखे, इतने काल का प्रमाद होता है तो बेले (दो उपवास) का प्रायश्चित्त आता है। इतनी जागरूकता, निरन्तर अप्रमाद का विकास। व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में जाए, जागरूकता के बिना सफल नहीं हो सकता। चाहे व्यापार, उद्योग अथवा राज्य संचालन का प्रश्न है, जहां भी प्रमादी लोग आकर बैठ जाते हैं, नशेबाज उसका संचालन करते हैं, उसकी व्यवस्था का ठीक संचालन नहीं होता। वे लोग समाज या व्यवसाय का सम्यक् संचालन करते हैं, जो निरन्तर जागरूक होते हैं और स्वत: अपने दायित्व का बोध करते रहते हैं। नशे का विकल्प
प्रश्न है-तनाव कैसे मिटाया जाए? नशा करने से आदमी को एक प्रकार का सुख मिलता है, इसमें कोई सन्देह नहीं। जब तक आदमी को उससे बड़ा सुख उपलब्ध नहीं कराया जाए, तब तक वह नशे को छोड़ नहीं सकता।
नशे का विकल्प है ध्यान । नशे में भी सुख मिलता है और ध्यान में भी सुख मिलता है। नशा और ध्यान-दोनों में इस बिन्दु पर कुछ समानता है। ध्यान से भीतर में इस प्रकार के रसायनों का स्राव होता है, केमिकल का चेंज होता है कि आनन्द टपकने लगता है। जिन लोगों ने ध्यान नहीं किया, वे सोच नहीं सकते कि ध्यान से सुख कैसे मिलता है। कुछ लोग कहते हैं-ध्यान करते हैं, पर मन जमता नहीं है, टिकता नहीं है। व्यक्ति जामन देना नहीं जानता है तो दूध जमेगा कैसे? वह फट जाता है, पर जमता नहीं है। दूध तब जमेगा, जब व्यक्ति जामन देना जाने । सम्यग् विधि से जामन दिया जाए तो दूध दही बन जाएगा। पानी बर्फ बन जाती है, यदि कोई बर्फ बनाना जाने । तरल पानी में गंदगी मिलाओ, पानी गंदला बन जाएगा। बर्फ की शिला बनाओ, उस पर गंदगी डालो, वह गंदगी रुकेगी नहीं, लुढ़क कर नीचे चली जाएगी। पानी जमा, बर्फ बन गई, दूध जमा, गाढ़ा दही बन गया। एक रूपांतरण हो गया। जैसे ही मन जमा, ध्यान घटित हुआ, भीतर से ऐसे रसों का स्राव होता है कि जैसे कोई सुख का झरना बह रहा
आज एक नई वैज्ञानिक पद्धति विकसित हो रही है। यह कहा जा रहा है-अगर हम हमारे कष्ट के संवेदनों को मस्तिष्क तक न पहुंचने दें तो कष्ट का अनुभव नहीं होगा। जो लोग बहुत शक्तिशाली हैं, जिनमें प्रगाढ़ वैराग्य है, स्वाध्याय के प्रति अनुराग है, वे अपने आप ध्यान की दिशा को बदल देते हैं।
___ काशी के महाराज का गीता के प्रति बड़ा अनुराग था। उनका ऑप्रेशन हो रहा था। उन्होंने डॉक्टरों से कहा-मुझे सूंघनी सुंघाने की जरूरत नहीं है। मुझे आप गीता
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