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व्यक्तित्व निर्माण और ध्यान
का साक्षात्कार करें।
प्रकृति का नियम है-सूक्ष्म जगत में चित्र पहले बन जाता है और स्थूल जगत में वह बाद में व्यक्त होता है। लन्दन में कुछ वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने एक फूल की कली का फोटो लिया। कली का फोटो लिया और फोटो आ गया एक फूल का। वे बड़े आश्चर्य में थे कि यह कैसे हुआ? कली में फूल का चित्र कैसे आया? जब वह कली विकसित हुई, फूल बना, तब वह वैसा ही फूल बना, जैसा चित्र में था। वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला-सूक्ष्म जगत में घट ना पहले घटित हो जाती है, स्थूल जगत में वह बाद में अभिव्यक्त होती है। हमारे जीवन में भी ऐसा ही होता है। शरीर में रोग होता है तब व्यक्ति को पता चलता है कि रोग हो गया, किन्तु उससे महीनों पहले सूक्ष्म शरीर में वह रोग हो जाता है, पता बाद में चलता है। मेडिकल साइन्स में ऐसी तकनीक का विकास हो रहा है, जिससे तीन महीने पहले ही रोग की घोषणा की जा सकेगी। यह बताया जा सकेगा-तीन महीने बाद शरीर में यह रोग होने वाला है। यह तकनीक है बॉयोलोजी की, सूक्ष्म शरीर-विज्ञान की। आभामण्डलीय ज्ञान के विकास से भी यह क्षमता उद्भूत होती है। जैसे आभामण्डल का ज्ञान विकसित होता चला जाएगा, यह घोषणा की जा सकेगी।
सूक्ष्म जगत में जो घटना घटित होती है वह स्थूल जगत में बाद में आती है। निश्चय नय में वह घटना पहले घट जाती है, व्यवहार नय में बाद में आती है। निश्चय का सत्य और व्यवहार का सत्य एक नहीं होता। निश्चय का सत्य सूक्ष्म होता है। वह बहुत सूक्ष्म चेतना के द्वारा जाना जा सकता है। व्यवहार नय का सत्य स्थूल होता है। वह इन्द्रियों के द्वारा जाना जा सकता है। इन्द्रिय चेतना गम्य और अतीन्द्रिय चेतना गम्य सत्य की प्रकृति एक नहीं होती। अनेक वैज्ञानिकों ने, जो गहन उलझन में थे, सपने में कोई मानसिक चित्र देखा और समस्या का समाधान हो गया। बहुत बार स्वप्न अवस्था में समस्या का समाधान मिलता है। इसका तात्पर्य है-मानसिक चित्र समस्या को समाधान दे देता है। तीन शर्ते
कल्पना, मानिसक चित्र का निर्माण और चित्र पर एकाग्रता की सिद्धि-ये तीन चरण संपन्न होते हैं तब चाह साकार होती है, कल्पना यथार्थ बन जाती है। आदमी बहुत कल्पनाएं करता है। उसकी अनेक कल्पनाएं अधूरी रह जाती हैं इसीलिए बहुत बार कहा जाता है-सपना अधूरा रह गया। हजारों-हजारों लोगों ने इस स्वर को दोहराया कि मन की मन में रह गई। कल्पना अधूरी क्यों रहती है? इसलिए कि व्यक्ति कल्पना करना तो जानता है, किन्तु कल्पना के अनुरूप चित्र बनाना नहीं जानता। कल्पना, मानसिक
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