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व्यक्तित्व निर्माण और ध्यान की संभावना थी पर दो-चार महीना पहले ही सब कुछ बिखेर दिया।
___ यदि आदमी एक विषय पर टिका रहता है तो कभी न कभी संभावना आ सकती है। आज नमक का, कल दाल का. परसों तेल का, चौथे दिन घी का, पांचवें दिन रूई का-प्रतिदिन व्यापार को बदला जाए तो क्या होगा? इस स्थिति में पागलपन अवश्य आ सकता है, कहीं सफलता नहीं मिल सकती। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा आदमी मिले, जो कल्पना न करता हो। शेखचिल्ली की कहानियां बहुत चलती हैं। ये कहानियां क्यों चलीं? सचाई यह है-वह हर व्यक्ति शेखचिल्ली है, जो कल्पना करता है। ये कहानियां इसलिए गढ़ी गई कि व्यक्ति ने कल्पना करना तो जाना पर मानसिक चित्र का निर्माण और ध्यान-ये दो सूत्र नहीं जाने। कल्पना असफल हो गई और वह असफल कल्पना शेखचिल्ली का घड़ा बन गई। जिन लोगों ने मानसिक चित्र का निर्माण और ध्यान करना जान लिया, एकाग्र होना जान लिया, वे यथार्थ तक पहुंच गए। सफलता का कारण
दोनों चित्र हमारे सामने हैं-शेखचिल्ली का चित्र भी सामने है और सफलताओं का वरण करने वालों के जीवन भी हमारे सामने हैं। इन दोनों दृष्टियों से विचार करें तो ध्यान की उपयोगिता हमारे सामने आ जाती है। जीवन विज्ञान में ध्यान को जोड़ा गया। केवल इसीलिए नहीं कि सबके सब विद्यार्थी आध्यात्मिक बन जाएंगे। ऐसा जिन्हें होना है, होंगे पर कम से कम जीवन की सफलता का सूत्र सबकी समझ में तो आएगा। सफलता का मार्ग ध्यान के सिवाय दूसरा नहीं है। आज जिन राष्ट्रों ने आर्थिक दृष्टि से बहुत प्रगति की है उनकी सफलता का सूत्र है एकाग्रता । जापान के लोगों से जब सफलता का सूत्र पूछा जाता है तब वे कहते हैं-हमारी व्यावसायिक सफलता का कारण है एकाग्रता। हम लोग इस पर गहरा अध्ययन करते हैं, प्रशिक्षण लेते हैं, ट्रेनिंग कोर्स चलाते हैं। हमें यह सिखाया जाता है कि व्यावसायिक क्षेत्र में भी किस प्रकार ध्यान का प्रयोग करना है? कैसे अपनी एफिसिएंसी को बढ़ाना है? इस दृष्टि से मूल्यांकन करें तो व्यक्तित्व निर्माण में ध्यान के मूल्य का अंकन किया जा सकता है।
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