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ध्यान और मस्तिष्कीय प्रशिक्षण
अंधेरी कोठरी में ढेला न फेंके
ध्यान करने वाले को इस बात का अनुशीलन करते रहना चाहिए कि मैं ध्यान क्यों कर रहा हूं ? ध्यान का उद्देश्य क्या है ? ध्यान केवल अंधेरी कोठरी में ढेला फेंकने जैसी बात नहीं है । व्यक्ति ध्यान करता चला जाए और उसे यह पता न हो कि मैं क्यों कर रहा हूं तो उसका अर्थ क्या होगा ? व्यक्ति को भूख लगती है तो रोटी खाता है, प्यास लगती है तो पानी पीता है। उसे पूछा जाए - तुम रोटी क्यों खा रहे हो ? पानी क्यों पी रहे हो ? क्या वह कहेगा कि मुझे पता नहीं है? यदि ऐसा उत्तर देता है तो लोग समझेंगे कि यह पागल आदमी है। हम क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं, इसका पता तो होना ही चाहिए । ज्ञान असीम है, ज्ञान के अनन्त पर्याय हैं । उन्हें प्रत्येक व्यक्ति नहीं जान सकता किन्तु जिन पर्यायों और अवस्थाओं के साथ हमें जीना है, उनका ज्ञान तो होना ही चाहिए। यह विडंबना ही है कि आदमी खाता चला जाता है किन्तु उसे यह पता नहीं रहता कि क्यों खा रहा है? यदि यह पता चल जाए तो बीमारियां बहुत कम हो जाएं। पेट की बीमारी है और खूब डटकर खा रहा है। यदि पूछा जाए क्यों खा रहे हो तो शायद वह सही उत्तर नहीं दे पाएगा। इस अवस्था में पेट को विश्राम देना चाहिए, जिससे पेट की क्रिया सही हो जाए। एक ओर दवा ले रहा है, दूसरी ओर ठूंस-ठूंस कर खा रहा है तो दवा का क्या असर होगा ? अम्लता (एसिडिटी) की बीमारी है । थोड़ी सी कठिनाई आती है और चाय पी लेता है । वह यह नहीं सोचता कि यह चाय एसिडिटी की बीमारी को और अधिक भयंकर बना देगी । पित्त की बीमारी है । तीक्ष्ण चीज खाएगा तो पित्त अधिक कुपित हो जाएगा ।
स्वास्थ्य के संदर्भ में यह जानकारी अवश्य होनी चाहिए कि मैं क्या खा रहा हूं और क्यों खा रहा हूं। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जिनका गला खराब है, फेफड़े खराब हैं किन्तु जब आइसक्रीम सामने आती है, तब वे अपने आपको रोक नहीं पाते। आंत और गले की शत्रु है आइसक्रीम । गले और आंत की बीमारी में आइसक्रीम खाएंगे तो गला ठीक होगा या अधिक खराब? स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने अपने मधुर कंठों का रहस्य बताते हुए एक बार कहा था- 'मैं अपने गले को इसलिए ठीक रख पा रही हूं कि मैं कभी ठंडी चीज का सेवन नहीं करती।' जो बहुत ठंडे पदार्थ का सेवन करेगा उसका गला भी खराब होगा, आंतें भी खराब होंगी । शरीर का जो तापमान है, उससे अधिक ठंडा या गरम खाने का अर्थ है बीमारी को नियंत्रण देना । यदि व्यक्ति इस सचाई को जाने, इसके अनुरूप चले तो स्वास्थ्य की समस्याएं जटिल नहीं बनेगीं ।
अज्ञान मिटे
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समस्या यह है हमारे प्रत्येक आचरण और व्यवहार के साथ यह अज्ञान जुड़ा हुआ है। इस अज्ञान का दूर होना जरूरी है । एक साधक को यह बोध होना चाहिए - मैं
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