________________
११८
तब होता है ध्यान का जन्म की बहुत बड़ी आवश्यकता या अनिवार्यता बन जाता है। ध्यान केवल उन लोगों के लिए ही नहीं है, जो अध्यात्म में रुचि लेते हैं, अध्यात्म की गहराई में पैठना चाहते हैं किन्तु आज तो वह उन लोगों के लिए भी उतना ही जरूरी है, जो शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं। चंचलता को कम करना और चित्त को निर्मल करना जीने के लिए आवश्यक बन गया है। अगर यह नहीं होता तो शायद जीवन भी खतरे में दिखाई देता है। पर्यावरण की समस्या और ध्यान
इन सारी स्थिति के संदर्भ में हम सोचें कि ध्यान का उपयोग कहां नहीं है? वह केवल आत्म-साधना के लिए ही नहीं है। यह सही है कि ध्यान का मुख्य ध्येय आत्मा-साधना है, किन्तु प्रासंगिक रूप में पारिपार्श्विक स्थितियों का अवलोकन करें तो नैतिकता के लिए, सामाजिक सम्बन्धों के लिए, मानवीय सम्बन्धों के लिए, व्यापार-व्यवसाय के लिए और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए ध्यान बहुत जरूरी है। यह सचाई समझ में आएगी तो ध्यान का मूल्यांकन होगा। प्रत्येक आदमी आज पढ़ना जितना जरूरी मानता है, स्कूल में जाना जितना जरूरी मानता है, उतना ही जरूरी मानेगा ध्यान करना। हर शिक्षक के मन में यह भावना पैदा होगी-जो शिक्षा चल रही है, वह पर्याप्त नहीं है, उसके साथ ध्यान को जोड़ना भी बहुत जरूरी है। यदि ध्यान जुड़ेगा तो विद्या के क्षेत्र में आने वाली समस्याओं को समाधान मिलेगा, स्कूल से अच्छे विद्यार्थी निकलेंगे, आवश्यकता, इच्छा और भोग के संयम का मूल्य समझने वाली पीढ़ी का उदय होगा। वस्तुत: पर्यावरण की समस्या का समाधान तभी हो सकता है, जब आवश्यकता, इच्छा और भोग के संयम का मूल्य समझ में आए। पर्यावरण की समस्या का मूल कारण है असंयम। ध्यान संयम की चेतना के जागरण का महान प्रयोग है। इसका समुचित मूल्यांकन किया जाए, इसे जीवन की अनिवार्य आवश्यकता समझा जाए तो पर्यावरण की गंभीर समस्या का समाधान सहज संभव है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org