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व्यक्तित्व निर्माण और ध्यान
व्यक्ति जैसा है, वैसा ही रहना नहीं चाहता, आगे बढ़ना चाहता है, नया निर्माण करना चाहता है, रूपान्तरण करना चाहता है, किन्तु केवल चाह मात्र से कुछ घटित नहीं होता। रूपांतरण के कुछ उपाय हैं। उन उपायों को जान लें तो व्यक्ति चाहे जैसा बन सकता है और न जाने तो चाह केवल चाह रह जाती है। कल्पना
रूपान्तरण का पहला चरण है-कल्पना। जब तक कल्पना स्पष्ट नहीं होती तब तक आगे का काम हो नहीं सकता। कार्य की सफलता के लिए सबसे पहले जरूरी है स्पष्ट कल्पना। यदि कल्पना स्पष्ट है तो मानना चाहिए, पच्चीस प्रतिशत काम हो गया।
मुझे क्या होना है? इसकी स्पष्ट कल्पना नहीं है तो आगे कोई गति नहीं हो सकती। एक छोटा बच्चा भी कुछ सपने संजो लेता है। अनेक बच्चों से पूछा-क्या बनना चाहते हो? एक ने कहा-डाक्टर बनना चाहता हूं। दूसरे ने कहा-इंजीनियर बनना चाहता हूं। तीसरे ने कहा-वैज्ञानिक बनना चाहता हूं। एक पांच-दस वर्ष का बच्चा इतना समग्र नहीं समझता किन्तु वह अपने स्तर पर यह कल्पना करता है कि मुझे यह बनना है। फिर उस दिशा में उसके चरण आगे बढ़ने लग जाते हैं। कोई कल्पना ही नहीं है तो फिर आगे बढ़ने का प्रश्न ही नहीं हो सकता। मानसिक चित्र का निर्माण
कल्पना का अगला चरण है-मानसिक चित्र का निर्माण । जो कल्पना की है, उसका एक मानसिक चित्र बना लें । जो व्यक्ति मकान बनाना चाहता है, उसके दिमाग मे एक पूरा चित्र होता है मकान का। मकान यथार्थ में बाद में बनता है, दिमाग में पहले बन जाता है। जब तक दिमाग में मकान नहीं बनेगा, यथार्थ में मकान बन नहीं पाएगा। कल्पना चित्र पर उतर आए तो मानना चाहिए-हम पच्चीस प्रतिशत और आगे बढ़ गए। जो स्पष्ट मानसिक चित्र बनाया है, उसे देखें । मस्तिष्क पर ध्यान करें और उस चित्र
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