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व्यक्तित्व निर्माण और ध्यान
एक बढ़िया आभूषण बन गया। यह मणिकांचन योग आज टूट गया। जीवन की बात जुड़े
जीवन विज्ञान का मुख्य सूत्र रहा-शिक्षा के क्षेत्र में जीविका के लिए जितना कुछ चल रहा है, उसके साथ जीवन की बात और जोड़ दें। शिक्षा के क्षेत्र में जीवन और जीविका-ये दोनों बातें जुड़ेंगी तो शिक्षा समग्र बन जाएगी। यदि शिक्षा के साथ केवल जीविका की बात जुड़ी रही तो समग्र व्यक्तित्व का नहीं, खंडित व्यक्तित्व का निर्माण ही सम्भव होगा। जहां व्यक्तित्व खंडित होता है वहां कोई भी बात पूरी नहीं बनती। आज हिंसा बहुत बढ़ रही है, उत्तेजना है, अपराध है, काफी कुछ अवांछनीय चल रहा है। कारण यही है--समाज को जीविका के बारे में बहुत जागरूक बना दिया गया किन्तु जीवन के बारे में नहीं बनाया गया। इसीलिए समाज को जैसा शिष्ट, सभ्य और शालीन होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। क्या वह भी कोई समाज होता है जहां भिन्न विचार वाले को मार दिया जाए, भिन्न विचार वाले पर अतिक्रमण और अत्याचार किया जाए? क्या ऐसा समाज शालीन समाज है? एक ओर वैचारिक स्वतंत्रता का उद्घोष दूसरी ओर भिन्न विचार की हत्या। आज ऐसे लोगों की दुनिया में संख्या अधिक है, जो भिन्न विचारों को सहन नहीं करते। ऐसे राष्ट्र हैं, जहां अमुक सम्प्रदाय के सिवाय दूसरे सम्प्रदाय का प्रचार नहीं किया जा सकता। सहिष्णुता की संस्कृति
__विदेशों में रहने वाले कुछ लोग दर्शन करने आए। हमने पूछा-वहां तुम प्रार्थना करते हो? अर्हत् वंदना करते हो? उन्होंने विवश स्वर में कहा-वहां हम चाहते हुए भी नहीं कर सकते। वहां दूसरे धर्म की प्रार्थना करना वर्जित है। यदि यह पता लग जाए-हम धार्मिक भजन गा रहे हैं तो कठोर दण्ड भुगतना पड़े। इतने नियंत्रण की शायद हिन्दुस्तान के लोग कल्पना भी नहीं कर सकते। भारत की संस्कृति सहिष्णूता और समावेश की संस्कृति रही है। उसने सबको स्वतंत्र अधिकार दिया है वैचारिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता दी है किन्तु कुछ परम्पराएं और संस्कृतियां ऐसी हैं जो अपने विरोधी विचार को सहन ही नहीं करती। यह बड़ी समस्या है और उसक प्रभाव भारतीय संस्कृति पर भी आ रहा है। भारतीय संस्कृति में सबको समाया गया हूण आए, यवन आए-न जाने कितने आए, सबको पचा लिया। कहीं किसी को मार नहीं, काटा नहीं, सबका समावेश कर लिया किन्तु शायद अब बाहर का प्रभाव यह भी आ रहा है। इस प्रभाव को तभी रोका जा सकेगा जब शिक्षा समग्र व्यक्तित्व के निर्माण का उपक्रम बने । जब तक शिक्षा में उदारता की बात, सहिष्णुता की बात नह आएगी तब तक शिक्षा की सार्थकता नहीं होगी।
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