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तब होता है ध्यान का जन्म हम शिक्षा के संदर्भ में ऐसी कल्पना करें, जिससे अखंड व्यक्तित्व के निर्माण का सपना साकार बन जाए। उस कल्पना के अनुरूप मानसिक चित्र तैयार करें। जब तक मानसिक चित्र परिपक्व नहीं होगा, उसके साथ सम्यक् दृष्टिकोण नहीं जुड़ेगा तब तक कल्पना कल्पना ही बनी रहेगी। चित्र बनाने के लिए कुछ बातें जोड़नी पड़ती हैं। एक आर्टिस्ट मकान की कल्पना करता है किन्तु जब तक इंजीनियर उस कल्पना को एक चित्र का रूप नहीं देता, मकान नहीं बनता। आर्टिस्ट ने नक्शा बना दिया, मॉडल बना दिया। उसके बाद इंजीनियर उसमें अपेक्षित काट-छांट करता है। कितनी सामग्री चाहिए, कितना मेटिरियल जरूरी होगा, यह आर्चिटेक्ट का नहीं, एक इंजीनियर का काम होता है। उसे इन सबका यथार्थ अनुमान न हो तो गड़बड़ हो जाती है। दूरी है कल्पना और यथार्थ में
___ चार व्यक्तियों ने निश्चय किया-परदेश चलें, कुछ कमाई करें। वे चारों विचित्र प्रकार की प्रकृति के थे। एक ज्योतिषी था, एक वैद्य था, एक तर्कशास्त्री था और एक वैयाकरण था। वे चारों एक गांव में पहुंचे। गांव के बाहर ठहर गए। एक ने कहा-खाना पकाना है। परस्पर काम बांट लें तो रसोई जल्दी बन जाएगी। चारों बैठ गए। ज्योतिषी से कहा गया-ज्योतिषी का काम यह है कि वह अच्छा मुहूर्त बता दे-रसोई के लिए चोका कब लगाना है, कौनसा नक्षत्र शुभ है आदि।
___ वैद्य से कहा गया-तुम इस गांव जाकर साग-सब्जी खरीद लाओ। क्योंकि वैद्य अच्छी तरह जानता है कि कौनसा शाक स्वास्थ्यकर होता है और कौनसा अस्वास्थ्यकर, कौनसा खाना चाहिए और कौनसा नहीं खाना चाहिए? कहीं यह न हो कि बहुत वायुकारक शाक आ जाए अथवा पित्त और कफ वर्धक शाक आ जाए। वैद्य स्वास्थ्य के लिए जो उत्तम होगा, वही शाक खरीदेगा।
· तर्कशास्त्री से कहा गया-तुम जाओ, घी-तेल आदि ले आओ। तर्कशास्त्री परे तर्क के साथ काम करेगा। वह ऐसा नहीं करेगा कि घी कम आए और रुपया ज्यादा दे दे। वह पूरा घी लायेगा और उचित मूल्य पर लाएगा।
वैयाकरण से कहा गया-तुम रसोई पकाओ। शब्दशास्त्री शब्दों को सिद्ध करने में कुशल होता है। जब तक व्याकरण में शब्द सिद्ध नहीं होता तब तक काम नहीं बनता। यह रसोई को सिद्ध करने में होशियार होगा।
क्षमता के अनुरूप काम का विभाजन हो गया।
ज्योतिषी ने मुहूर्त बता दिया। उसका काम हो गया। शब्दशास्त्री को रसोई बनानी थी, वह वहीं बैठ गया। वैद्य और तर्कशास्त्री बाजार में चले गए। वैद्य सब्जी-मण्डी में पहुंचा। उसने एक स्थान पर मूली देखी, सोचा-मूली बहुत वायुकारक
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