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ध्यान कोई जादू नहीं है करने में बहुत कठिनाई हुई। नियम बना दिया गया पर केवल नियम बनाने से काम नहीं होता। उस स्थिति में जयाचार्य ने प्रशिक्षण देने के लिए साहित्य रचा, गीतिकाएं बनाई। जब साधु आहार करने बैठते तब एक मुनि खड़ा होकर टहुका पढ़ता। उसमें जयाचार्य ने बताया है-जो संविभाग से आहार नहीं करता, वह कितना अपराध करता है। भगवान महावीर ने कहा है-असंविभागी न हु तस्स मोक्खो-असंविभागी होता है, उसे मोक्ष नहीं मिलता। जो संविभागी होता है, उसे मोक्ष की साधना सुलभ होती है। जो अपने विभाग में संतुष्ट रहता है, वह मुनि अगंज हो जाता है, उसे कोई पराजित नहीं कर सकता। जो संविभाग में संतुष्ट नहीं होता और कहता है-मुझे यह दो, वह दो, वह अवहेलना का पात्र बनता है, अनेक दोषों का भागी बनता है। जयाचार्य ने इस प्रकार का मानसिक प्रशिक्षण गीतों द्वारा बार-बार दिया। पांच-दस वर्ष में ही संत असंविभाग की बात भूल गये, संविभाग परम धर्म हो गया। आज स्थिति यह है-यदि दस साधु हैं और भिक्षा में पांच रोटियां हैं तो सबको आधी-आधी रोटी मिल जाएगी। आज संविभाग की चेतना इतनी प्रतिष्ठित हो गई है कि असंविभाग की चर्चा नहीं होती। महत्त्व दें प्रशिक्षण को
यह सचाई है कि व्यक्ति को बदला जा सकता है, समाज को बदला जा सकता है लेकिन वह तभी संभव है, जब मस्तिष्क का प्रशिक्षण हो। हम केवल कानून बना दें, मस्तिष्क को बदलने की कोई प्रक्रिया न दें तो फिर डंडा ही चलेगा, आदमी नहीं बदलेगा। आज कुछ ऐसा ही समाज के क्षेत्र में हो रहा है, जिससे परिवर्तन की बात समझ में नहीं आती। समाज को बदलना है, व्यक्ति को बदलना है तो उसे मानसिक और भावानात्मक स्तर पर प्रशिक्षित करना होगा। केवल शरीर के स्तर पर प्रशिक्षित करने की बात विद्यार्थी को मुर्गा बना देने जैसी है। अध्यापक भी विद्यार्थी को मुर्गा बनाता है, पुलिस भी मुर्गा बनाती है। क्या मुर्गा बनते-बनते व्यक्ति मुर्गा ही नहीं बनेगा? आदमी को आदमी बनाना है तो प्रशिक्षण की बात को महत्त्व देना होगा। आज ऐसा लगता है-मस्तिष्क के प्रशिक्षण की बात हटा दी गई है। अन्य क्षेत्रों की बात छोड़ दें, धर्म के क्षेत्र में भी शायद प्रशिक्षण की बात नहीं चल रही है, केवल रूढ़ि चल रही है। व्यक्ति साधुओं के पास आता है, उनके चरणों में सिर टिकाता है और समझता है-धन्य हो गया। मंदिर में जाने वाला व्यक्ति समझता है-पाठ कर लिया, आरती कर ली, धन्य हो गया। वस्तुत: ये हमारी श्रद्धा को टिकाने के माध्यम मात्र हैं। मूल है मस्तिष्क का प्रशिक्षण, जिससे हमारा आचरण बदले, व्यवहार बदले। विसंगति धर्म के क्षेत्र में
___ धर्म के क्षेत्र में एक विसंगति आ गई। एक ओर कर्मकाण्ड चलता है, दूसरी
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