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ध्यान कोई जादू नहीं है
मनुष्य की चिर आकांक्षा है - मस्तिष्क बदल, चिन्तन बदल, व्यक्तित्व बदल । उसके लिए ध्यान बहुत उपयोगी है, किन्तु ध्यान कोई जादू का डंडा नहीं है, जिसे सिर पर घुमा दो और एक क्षण में सब कुछ बदल जाए। कभी नहीं होता । प्रत्येक परिवर्तन के पीछे दीर्घकालीन साधना होती है। दुनिया में जो भी परिवर्तन होता है, वह दीर्घकालीन साधना के बाद होता है । यदि अल्पकाल में कुछ परिवर्तन हो भी जाता है तो टिकाऊ नहीं होता अथवा जैसा होना चाहिए वैसा सुन्दर और रमणीय नहीं होता । वही वस्तु स्थाई, रमणीय और आकर्षक होती है, जिसके पीछे साधना बोलती है ।
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संदर्भ शिक्षा का
शिक्षा का संदर्भ लें। छात्र ने आज विद्यालय में प्रवेश पाया और आज ही वह उत्तीर्ण हो गया, क्या यह संभव है ? ऐसा कभी नहीं होता । एक व्यक्ति को प्रथम कक्षा से एम.ए. तक पहुचने में कितने वर्ष लगते हैं? उसके लिए कितना बड़ा पाठ्यक्रम होता है, कितना व्यय होता है । दस-बारह वर्ष लगते हैं तब वह व्यक्ति स्नातकोत्तर परीक्षा में उत्तीर्ण होता है। यदि विशेषज्ञ बनना है, पी. एच. डी. करना है तो एम.ए. के बाद भी अनेक वर्ष लग जाते हैं । एक व्यक्ति को अपने बौद्धिक विकास के लिए, उच्च शिक्षा पाने के लिए सोलह वर्ष, बीस अथवा पचीस वर्ष तक लगाने पड़ते हैं । बौद्धिक विकास के लिए पचीस वर्ष लगाने में भी व्यक्ति को ऐसा नहीं लगता कि बहुत लम्बा समय हो गया है। किन्तु ध्यान के लिए पांच वर्ष का समय भी लगाना पड़ता है, तो ऐसा लगता है- इतना लम्बा समय हो गया है, अभी कुछ मिला ही नहीं ।
व्यक्ति नहीं सोचता- आज ही साधना के क्षेत्र में प्रवेश किया है, पहला शिविर पूरा नहीं हुआ है, उससे पहले ही कुछ मिलने की बात कैसे संभव है? क्या ध्यान कोई जादू है ? लोग कहते हैं- ध्यान शिविर में आए, अभी तो कुछ बदला ही नहीं । वे यह नहीं सोचते- - यह कैसे संभव है कि आज ही पहली कक्षा में प्रवेश पाया और आज ही बदल जाएगा, स्नातकोत्तर में चला जाएगा ? प्रथम कक्षा के विद्यार्थी को कभी एम.ए. का कोर्स नहीं पढ़ाया जाता । प्रथम कक्षा के ध्यानार्थी को भी निर्विकल्प समाधि की साधना नहीं
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