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संभव है आत्मा का साक्षात्कार
सकता हूं। मन को अमन बना सकता हूं? इस शक्यता के आधार पर शक्ति का नियोजन करें। आत्म-साक्षात्कार के दोनों रूप हमारे सामने आ जाएंगे। दृष्ट फल भी मिलेगा और अदृष्ट फल भी मिलेगा। दृष्ट फल का तात्पर्य है कि स्व-संवेदन जाग जाए। आत्म-दर्शन की अभिलाषा रखने वाले व्यक्ति ने जैसे ही इन्द्रिय और मन का निरोध किया, दृष्ट फल उसके सामने आ गया। यदि स्व-संवेदन की मात्रा बढ़ती चली जाए तो एक दिन अमूर्त को जानने वाला ज्ञान प्रकट होगा, आत्मा का साक्षात्कार हो जाएगा। यह अदृष्ट फल है किन्तु निरन्तर प्रयत्न से इसकी उपलब्धि भी संभव है। आरोहण करें
___ लक्ष्य, शक्यता, दृष्ट फल और अदृष्ट फल-इन चार बिन्दुओं की ठीक मीमांसा कर ध्यान का प्रयोग करें। आत्मा का साक्षात्कार असंभव नहीं है। साक्षात्कार की अलग-अलग कोटियां बनेंगी। एक व्यक्ति ऊपर चढ़ना चाहता है। अभी एक सीढ़ी पर चढ़ा है, बीस सीढ़ियों को पार करना शेष है। हम क्या कहेंगे? वह ऊपर चढ़ा या नीचे उतरा? वह दो सीढ़ी पर चढ़ा तब ऊपर चढ़ा है और बीसवीं सीढ़ी पर चढ़ा है तब लक्ष्य तक पहुंचा है। आत्मा का साक्षात्कार पहली सीढ़ी है। किन्तु बीस सीढ़ियां चढ़ना अभी शेष है। चढ़ते-चढ़ते बीसवीं सीढ़ी भी आ जाएगी और अमूर्त का साक्षात्कार हो जाएगा। हम इन्द्रिय और मन का संवरण करें, स्व-संवेदन का अनुभव होगा। इसका अर्थ है-हमारा आरोहण हो गया, हम आत्म-साक्षात्कार की निकट भूमिका में पहुंच गए। पूरे संकल्प के साथ हम ध्यान की साधना प्रारम्भ करें, प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करें तो इस पांचवें आरे में भी, वज्रऋषभनाराच संहनन के अभाव में भी, आत्म-साक्षात्कार का सपना सच बन जाएगा।
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