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तब होता है ध्यान का जन्म
योग अथवा ध्यान में तीन शब्द बड़े महत्त्वपूर्ण हैं-आत्मानुभव, आत्मानुभूति या आत्मदर्शन । तीनों का तात्पर्य है-स्वसंवदेन । हमारा एक संवेदन पदार्थ से जुड़ा हुआ होता है। किसी वस्तु को जानते हैं तो इन्द्रिय का वेदन पदार्थ के साथ जुड़ा रहता है। हमारा ज्ञान वस्तु को जानने में व्याप्त रहता है। मन किसी विषय का चिन्तन करता है, स्मृति अथवा कल्पना करता है तो मन का वेदन पदार्थ के साथ जुड़ा रहता है। इन्द्रिय और मन का निरोध करें
बाह्य जगत् में सारा व्यापार इन्द्रिय और मन के माध्यम से होता है। पहला स्रोत बनता है इन्द्रिय और दूसरा स्रोत बनता है मन । जब इन्द्रिय और मन दोनों का निरोध हो जाता है, उस अवस्था में अतीन्द्रिय प्रकट होता है। वह है हमारी स्वसंवेदन की अवस्था। इसी का नाम है-आत्मा का साक्षात्कार ।
___ कोई भी व्यक्ति ध्यान के आधार पर, श्रुत ज्ञान के आधार पर, तत्त्वचर्चा के आधार पर, आत्मा का साक्षात्कार नहीं कर सकता, स्व-संवेदन की भूमिका तक नहीं जा सकता। स्व-संवदेन की भूमिका में वही व्यक्ति पहुंच पाएगा, जिसने इन्द्रियों और मन का निरोध करना सीख लिया है। ध्यान का सारा उपक्रम इसलिए है कि इन्द्रियों की चंचलता कम हो, हमारी एकाग्रता बढ़े, लम्बी बने। उसके लिए दीर्घकालीन साधना करना आवश्यक है। उस अवस्था में जो अज्ञात है, वह ज्ञात होगा। संभव है मन का निरोध
___ ध्यान के विषय में सारे दार्शनिक मत एक नहीं हैं। एक मत है-जहां मन नहीं है, इन्द्रियों का व्यापार नहीं है, वहां उस अवस्था में अभाव की स्थिति बन जाती है। साक्षात्कार में यह बात सम्भव नहीं है। दर्शन में कुछ अभाव में कुछ तो मानते हैं किन्तु जहां ज्ञान का अभाव है, वहां ध्यान नहीं होगा, जड़ता हो जाएगी। ज्ञान का अभाव है जड़ता, किन्तु ध्यान होने का मतलब है, स्वसंवेदन का जागना। यह जड़ता नहीं है। यह इन्द्रिय और मन का अभाव जड़ता नहीं है, विशेष शक्ति का जागरण है।
मन का निरोध जैन साधना की प्रक्रिया में संभव है, पतंजलि की साधना में संभव है, किन्तु बौद्ध परम्परा में संभव नहीं है। इसका कारण यह है-जैन दर्शन आत्मा को मानता है, चित्त को स्वीकार करता है। चित्त आत्मा की एक रश्मि है। मन न आत्मा है, न चित्त है। बौद्ध दर्शन में मन ही सब कुछ है, तो निरोध किसका करेंगे। मन का निरोध करने पर कुछ नहीं बचेगा।
__ जैन परिभाषा में मन का अर्थ है-मनोवर्गणा। जीव के द्वारा मनोवर्गणा के आधार पर जब मनन किया जाता है, तब मन का निर्माण होता है। मन
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