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ध्यान का परिवार रोकते हुए चलें । श्वास का संयम करना ध्यान के लिए बहुत आवश्यक है किन्तु वह विवेक पूर्वक और सम्यक् जानकारी के बाद होना चाहिए। प्राणायाम और ज्ञान
एक प्रश्न हो सकता है प्राणायाम का लाभ क्या है? कहा गया-तत: क्षीयते प्रकाशावरणम्-प्राणायाम से प्रकाश का आवरण क्षीण होता है। बड़ी अजीब बात है। एक ओर प्राणायाम करो, श्वास को रोको, दूसरी ओर उसका परिणाम यह है-प्रकाश का आवरण क्षीण होता है। इन दोनों में मेल कहां है? प्राणायाम का और ज्ञान का क्या संबंध है? वस्तुत: यह गहन विषय है। आचार्य ने गहरी बात कही है। भाष्यकारों ने भी शायद इसे पकड़ा नहीं। इसका अर्थ बड़ा जटिल बना दिया। इसका अर्थ आचारांग के संदर्भ में समझा जा सकता है। आचारांग सूत्र में भगवान महावीर ने कहा-'आगयपण्णाणाणं ... पयणुए य मांससोणिए' जो प्रज्ञावान होगा, उसका मांस-शोणित प्रतनु होगा। जिसकी मांस-चर्बी बढ़ी हुई है, लोही बहुत है, वह प्रज्ञावान नहीं बन पाएगा। प्रज्ञावान होने के लिए चर्बी का कम होना बहुत आवश्यक है। चर्बी हमारे ज्ञान पर आवरण डालती है। आदमी जितना ज्यादा मोटा होता है, बीमारियों के लिए उतनी ही सुविधा है। अधिक चर्बी, अधिक बीमारी-आधुनिक मेडिकल सांइस द्वारा यह तथ्य बहुत समर्थित है।
पूज्य गुरुदेव अहमदाबाद में विराज रहे थे। मैं प्राणायाम के कुछ प्रयोग कर रहा था। एक डॉक्टर दर्शन के लिए आया। संतों ने कहा-'लम्बाई की अपेक्षा महाप्रज्ञजी का वजन कम है।' डॉक्टर ने कहा-'बहुत अच्छा है। मेरा कहना मानें तो वजन मत बढ़ाइये।'
चर्बी आवरण बनती है, प्रकाश पर भी आवरण डालती है। इस रहस्य को समझना बहुत आवश्यक है। शरीर के भीतर आत्मा है। आत्मा का ज्ञान कहां से आ रहा है? भीतर से आ रहा है या बाहर से ? वह भीतर से ही तो आ रहा है। आंख एक द्वार बन गया। आंख में से छनकर ज्ञान की रश्मियां बाहर आ रही हैं। कान एक द्वार बन गया। कान से छनकर ज्ञान रश्मियां बाहर आ रही हैं और बाहर को पकड़ रही हैं। हमारे ज्ञान के पांच स्रोत, पांच दरवाजे बन गए, जो बाहर के विषयों को लेते हैं। ज्ञान की रश्मियां इन स्रोतों में से बाहर निकल रही हैं। आपने कोई दीया जलाया और दीये पर सघन ढक्कन रखा। दीये का प्रकाश भीतर सिमट जाएगा, बाहर कुछ भी नहीं आएगा। ऐसा ढक्कन रखा, जो जालीदार है तो स्रोतों में से छन-छन कर प्रकाश की रश्मियां बाहर निकल आएंगी।
हमारी आत्मा में ज्ञान भरा पड़ा है। वह ज्ञान बाहर निकलना भी चाहता है,
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