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तब होता है ध्यान का जन्म
देखकर ही घबरा जाता है। पूरी जांच की पद्धति से गुजरने के बाद डॉक्टर दवा देगा। दवा की तालिका भी इतनी बड़ी होती है कि सामान्य व्यक्ति के लिए उसका बिल चुकाना भी मुश्किल हो जाता है।
डॉक्टर ने रोगी से पूछा-'कहो, कैसे हो?' 'वैसे ही चल रहा है।' 'क्या दवा से ठीक नहीं हुए।' 'ठीक तो हो गया।' 'फिर क्या हुआ?'
‘पहले तो मैं आपकी दवा से ठीक हुआ था किन्तु जब आपका और दवा का बिल देखा तब फिर वैसा का वैसा बीमार हो गया।'
चिकित्सा के लिए बहुत लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, बहुत सारी समस्याएं और बाधाएं होती हैं। ठीक यही स्थिति ध्याता की होती है। ध्यान करने वाला व्यक्ति आत्मा तक पहुंचना चाहता है पर यह संभव नहीं है कि वह सीधा पहुंच जाए। पहले काफी जांच करानी होती है। पूरे शरीर की जांच करानी होती है, मन और भावना की जांच करानी होती है। उसे कराने में काफी समस्याएं आती हैं। वह ध्यान कैसे करेगा?
एक भाई ने अपनी समस्या रखी-मुझे निषेधात्मक विचार बहत आते हैं। दिन भर बुरे विचार आते हैं। किसी को देखता हूं तो बुरा विचार आता है। किसी को कुछ देता हूं तो विचार आता है कि कहीं धोखा न हो जाए। रात-दिन नकारात्मक विचार (नेगेटिव एटीट्यूड) बना रहता है। इससे कैसे छुटकारा मिलता है? व्यक्ति सम्पन्न था, कोई कमी नहीं थी पर यह मानसिक समस्या उसके लिए बहुत बड़ी बन गई। मन की समस्या का सम्बन्ध सम्पन्नता और विपन्नता से नहीं है। एक विपन्न आदमी भी बहुत खुश रहता है। एक सम्पन्न आदमी भी गंभीर और उदासीन रहता है। जिसके सामने यह निषेधात्मक विचारों की समस्या है, वह ध्यान करके कैसे आत्मा तक पहुंचेगा? जो व्यक्ति डिप्रेशन-अवसाद की बीमारी से ग्रस्त है, वह आत्मा का ध्यान कैसे करेगा? मन की पचासों समस्याएं हैं। वह आत्मा का ध्यान कैसे करेगा? मुख्य ध्येय : गौण ध्येय
. आत्मा तक पहुंचने के लिए, ध्येय को पाने के लिए, शारीरिक समस्याओं पर विजय पाना भी जरूरी है, मानसिक समस्याओं से निपटना भी जरूरी है। जितनी
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