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तब होता है ध्यान का जन्म
करना चाहता है किन्तु शरीर से स्वस्थ नहीं है तो वह ध्यान नहीं कर पाएगा। जो व्यक्ति उच्च रक्तचाप से पीड़ित है, वह ध्यान कैसे करेगा? एक व्यक्ति हृदय रोग से पीड़ित है वह ध्यान की गहराई में कैसे जा सकेगा? शरीर की बहुत सारी बीमारियां ध्यान में बाधक बनती हैं। हमें अनेक साधनों का चुनाव करना होगा, एक प्रयोग से काम नहीं चलेगा। हम एक ही प्रकार का ध्यान-आत्मा का ध्यान करें तो सीधा पहुंच नहीं पाएंगे। पहले जितनी सारी बाधाएं हैं, उन बाधाओं को निरस्त करेंगे तो हम आत्मा की स्थिति तक पहुंच पाएंगे।
एक व्यक्ति ने अपने मित्र से कहा-'मैं ऐसी महिला से शादी करूंगा, जो मेरी तीन शर्ते पूरी करें।'
क्या शर्ते हैं तुम्हारी?' 'बुद्धिमती होनी चाहिए, रूपवती होनी चाहिए और मितभाषिणी होनी चाहिए।'
मित्र बोला-बड़े मूर्ख हो तुम ! इस महंगाई के जमाने में तीन पत्नियों का भार कैसे वहन करोगे? एक भी महिला तुम्हें ऐसी नहीं मिलेगी, जो बुद्धिमती भी हो, रूपवती भी हो और मितभाषिणी भी हो। इस स्थिति में तीन का खर्चा कैसे उठा पाओगे?'
एक से काम नहीं चलता, अलग-अलग प्रयोग करना होता है। एक ऐसा क्यों नहीं मिलता? इसकी हम मीमांसा करें। आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है कषाय । कषाय के दो रूप हैं-राग और द्वेष। राग ने ममकार और अहंकार का जाल बिछा रखा है। द्वेष ने शत्रुता, अप्रियता और घृणा का जाल बिछा रखा है। इन सब जालों को तोड़े बिना सीधा कोई राजधानी पर आक्रमण करेगा तो क्या वहां पहुंच पाएगा?
चाणक्य यात्रा करते-करते एक गांव में पहुंचा। एक बुढ़िया ढाबा चला रही थी। चाणक्य को भूख लगी। वह भोजन के लिए ढाबे पर आया। बुढ़िया ने खिचड़ी परोसी। चाणक्य ने खिचड़ी के बीच सीधा हाथ डाल दिया। हाथ जल गया। बुढ़िया बोली-'भाई ! तू चाणक्य जैसा मूर्ख लगता है।' चाणक्य आश्चर्यचकित हो गया। चाणक्य बोला-'मा ! चाणक्य मूर्ख कैसे है?'
बुढ़िया बोली-'मूर्ख तो है ही। सीधा राजधानी पर आक्रमण करता है पर आस-पास के जनपदों को जीतता नहीं है। राजधानी में अपार शक्ति और सेना है। वह उसको पछाड़ देती है। अगर वह समझदार होता तो पहले छोटे-छोटे जनपदों पर विजय पाता, फिर शक्ति बटोरकर राजधानी पर आक्रमण करता।
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