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तब होता है ध्यान का जन्म
'उस भींत पर है। 'भीत कहां है।' डॉक्टर ने कहा-'चले जाओ, तुम्हारा कोई इलाज नहीं हो सकता।'
दृष्टि ही नहीं है तो बेचारा डॉक्टर क्या करेगा? अगर हमारा दृष्टिकोण ही समग्रता का नहीं बनता है तो प्रेक्षाध्यान का शिविर क्या करेगा? ध्यान कराने वाला भी क्या करेगा? हम दृष्टि-सम्पन्नता के साथ ध्यान का प्रयोग करें, ध्यान की उसके परिवार के साथ उपासना करें तो जीवन में सफल होने की निश्चित संभावना की जा सकती है।
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