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तब होता है ध्यान का जन्म
कोई समाधान नहीं मिला। आखिर अष्टावक्र के सामने जनक ने प्रश्न रखा–महाराज! बताइए, यह सच है या वह सच है? अष्टावक्र ने कहा-'राजन्! न यह सच है और न वह सच है। दोनों भ्रांतियां हैं। सपना भी एक भ्रांति है और ये जो पदार्थ हैं, राज्य है, यह भी एक भ्रांति है। तुम भ्रांति का जीवन जी रहे हो। जो सच है, वह इन दोनों से परे है।' तीसरा सच
जब ध्यान परिपक्व होता है तब ये भ्रांतियां टूटती हैं, न यह सच रहता है, न वह सच रहता है। एक तीसरा सच सामने आता है, जो न पदार्थ का सच है और न स्वप्न का सच है। एक यथार्थ सामने आ जाता है-द्रव्य सत्य है और पर्याय अपनी कालावधि में सत्य है किन्तु वह बाद में असत्य बन जाता है। मनुष्य जीवन क्या है? मनुष्य एक पर्याय है। वह आज है किन्तु यह पता नहीं है कि सौ वर्ष के बाद मनुष्य कहां होगा? जितने पदार्थ हैं, सब पर्याय हैं। हम द्रव्य को नहीं देख पाते। हमारे शरीर के अन्दर शक्ति नहीं है जिससे हम द्रव्य को देख सकें । हम पर्यायों को देखते हैं और पर्यायों में भी स्थूल पर्यायों को देखते हैं। सूक्ष्म पर्याय, अर्थ पर्याय अथवा स्वभाव पर्याय को हम नहीं देख सकते। जैसे-जैसे हमारा ध्यान परिपक्व बनेगा वैसे-वैसे हम सूक्ष्म पर्यायों को जानना शुरू करेंगे। अन्तर है विश्लेषण का
पतंजलि ने समाधि का एक प्रकार बतलाया है--विचारानुगत। जब विचारानुगत समाधि का अभ्यास होता है, हम सूक्ष्म पर्यायों को जानना शुरू कर देते हैं। जब सूक्ष्म पर्याय हमारे सामने आते हैं तब ऐसा लगता है-जो मान रखा था, वह सारा भ्रम था। एक सामान्य व्यक्ति एक मनुष्य को देखता है, वह इन स्थूल बातों को जान लेता है-चमड़ी है, मांस है, हड्डी है, लोही है। जब एक वैज्ञानिक शरीर का विश्लेषण करता है, उसके सामने न चमड़ी होती है, न मांस होता है। उसके सामने होगा रासायनिक विश्लेषण । फॉस्फोरस कितना है? धातुएं कितनी हैं? कितनी धातुओं से यह शरीर बना है? सारी स्थिति बदल जाएगी। एक वैज्ञानिक का पदार्थ विश्लेषण और दर्शन तथा एक सामान्य व्यक्ति का दर्शन-दोनों में बहुत अन्तर आ जाएगा।
वैज्ञानिक सूक्ष्म पर्यायों को जानने में समर्थ हो सकता है। उसके पास ऐसे यंत्र हैं, उपकरण हैं कि वह सूक्ष्म पर्यायों को जान सकता है। इन चर्म चक्षुओं से सूक्ष्म पर्यायों को नहीं जाना जा सकता। जब सूक्ष्म पर्यायों का दर्शन होता है, व्यक्तित्व का रूप एक प्रकार का बन जाता है और स्थूल पर्यायों का दर्शन होता है तब व्यक्तित्व का रूप दूसरे
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