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तब होता है ध्यान का जन्म एक मिनट में बच्चा रोता है, दूसरी मिनट में बिल्कुल भूल जाता है। दूसरे दिन दोनों बच्चे फिर आए और आपस में खेलने लगे पर दोनों बच्चों के मां-बाप मिलने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उनमें एक गांठ बन गई। उनका वह वैर-भाव वर्षों तक चलता रहा। बच्चों ने दूसरे दिन ही आपसे में बैर समाप्त कर दिया किन्तु उनके माता-पिता उसे नहीं भुला सके। एक बालक एक दिन ही नहीं, एक घण्टे बाद ही घटना को भुला देता है। यह है बालक की मनोवृत्ति। जब तक लचीलापन होता है तब तक बालक की मनोवृत्ति रहती है। जैसे-जैसे कड़ापन आ जाता है, वैसे-वैसे प्रौढ़ की मनोवृत्ति बनती चली जाती है।
__ आसन का उद्देश्य है-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाए रखना। सभी हड्डियां लचीली रहनी चाहिए पर मुख्यत: रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कॉड) पृष्ठरज्जु का भाग बिल्कुल लचीला रहे, यह अपेक्षित है। इसका लचीला होना शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है। लचीलापन बढ़े, कड़ापन न आए, यह आसन का एक बड़ा उपयोग है। प्राणायाम
___ ध्यान के परिवार का एक सदस्य है-प्राणायाम। प्राणायाम का अर्थ है-श्वास का निरोध। श्वास लेना और छोड़ना स्वाभाविक क्रिया है। जो श्वास लेगा, वह उसे छोड़ेगा पर प्राणायाम का मूल अर्थ श्वास का विस्तार नहीं है। आयाम शब्द का एक अर्थ होता है-विस्तार। प्रस्तुत संदर्भ में आयाम शब्द का तात्पर्य है-श्वास पर नियंत्रण करना। श्वास का निरोध करना भी ध्यान के लिए बहुत जरूरी है। जिन व्यक्तियों में मन की चंचलता बहुत गहरी होती है, मन कहीं रुकता ही नहीं है, उनके लिए प्राणायाम का प्रयोग बहुत आवश्यक है। श्वास को रोकने की विधि का पूरा ज्ञान होना चाहिए। पूरी विधि को जाने बिना श्वास को रोकने से हानि भी बहुत होती है। यह विवेक होना चाहिए-एक साथ लंबा न रोकें, पांच सैकण्ड, दस सैकण्ड अथवा उतना रोकें जितना रोकने में कोई कठिनाई न हो। श्वास को जबरदस्ती नहीं रोकना चाहिए। श्वास रोकने वालों को पहले अपने शरीर का परीक्षण भी कर लेना चाहिए। जिनके हार्ट ट्रबल है, हाई ब्लड प्रेशर है, उन्हें श्वास को रोकना नहीं चाहिए। उच्च रक्तचाप, हृदय की वेदना-इन स्थितियों में श्वास को रोकना अच्छा नहीं है। सामान्य स्थिति हो तो थोड़े क्षणों के लिए. पांच सैकण्ड, दस सैकण्ड, बीस सैकण्ड तक रोकने का धीरे-धीरे अभ्यास करते चलें। इससे अपने आप ध्यान की योग्यता प्रकट हो जाती है, मन की चंचलता कम हो जाती है। जब-जब दीर्घ श्वास का प्रयोग किया जाता है, यह सुझाव दिया जाता है-श्वास का संयम करें, पांच-दस सैकण्ड के लिए श्वास को रोकें । अन्तर्यात्रा का प्रयोग करें। चेतना को पृष्ठरज्जु के ऊपर से नीचे तक ले जाएं तो बीच-बीच में श्वास को
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