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ध्यान किसका करें?
व्यक्ति कोई भी काम जागरूकता के साथ करता है तो अनुभव करता है कि यह काम ध्यानपूर्वक किया। अन्यमनस्क स्थिति में करता है तो अनुभव करता है कि काम किया पर उसमें ध्यान नहीं रहा। उससे पूछा गया-कोई आया? उत्तर मिला-आया तो था पर मुझे पता नहीं चला क्योंकि मैंने ध्यान नहीं दिया। यह ध्यान का पूर्व रूप प्रत्येक व्यक्ति में मिलता है। प्रत्येक व्यक्ति ध्यान करता है। कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है, जो ध्यान न करे। हम जिस ध्यान की चर्चा कर रहे हैं, वह ध्यान का उच्चतम प्रयोग है। वह ऐसा ध्यान है, जहां हम किसी पवित्र आलंबन पर चेतना को स्थापित करें, मन को एकाग्र बनाएं। ध्यान के दो प्रकार
प्रश्न है-ध्यान किसका करें? ध्यान कहां करें? ध्यान का आलंबन क्या होना चाहिए? आगम में दो प्रकार का ध्यान बतलाया गया है। अपने स्वरूप पर ध्यान टिकाना, यह है निश्चय नय का ध्यान । दूसरे का आलंबन लेकर ध्यान करना या किसी वस्तु पर ध्यान टिकाना, यह है व्यवहार नय का ध्यान
निश्चयात् व्यवहाराच्च, ध्यानं द्विविधमागमे।
स्वरूपालंबनं पूर्व, परालंबनमुत्तरम् ।। हमारे सामने आत्मा स्पष्ट नहीं है। आत्मा को स्वीकार किया है, माना है, किन्तु उसका साक्षात्कार नहीं है। उसके स्वरूप का हमें बोध मिला है कि आत्मा शुद्ध है। उसमें अनंत ज्ञान है, अनंत दर्शन है, अनंत वीर्य है, अनंत आनंद है। यह हमने पढ़ा है किन्तु उसका साक्षात्कार नहीं हुआ है। पदार्थ हमारे सामने हैं । आकाश को हम जानते हैं, देखते हैं। वह ऊपर है किन्तु साक्षात् नहीं है।
सूरज, चांद, दीप, रत्न-ये हमारे सामने स्पष्ट हैं। बहुत सारे परालम्बन हमारे सामने प्रत्यक्ष हैं। स्वरूप का आलंबन परोक्ष है। हम अपने स्वरूप को साक्षात नहीं जानते। केवल आगम के आधार पर, श्रुतज्ञान के आधार पर जानते हैं कि आत्मा
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