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तब होता है ध्यान का जन्म
बजाते हैं, उसमें अभी समय है । अगर तुम भेरी का एक छोटा-सा टुकड़ा किसी भी प्रकार से प्राप्त कर लो तो समस्या का समाधान हो सकता है।' सेठ ने कहा- 'यह कैसे संभव है?' उसने कहा- 'जो रक्षक है, उसे रिश्वत दे दो ।' रिश्वत आज से नहीं चली है, बहुत पुराने काल से चल रही है। यदि वह भेरी का टुकड़ा प्राप्त कर लो तो तुम्हारी बीमारी मिट जाएगी। सेठ ने रक्षक के सामने बात रखी। रक्षक बोला- 'यह कैसे हो सकता है? भेरी का टुकड़ा तुम्हें कैसे मिल सकता है ? ' सेठ ने उसके हाथ में रुपयों की थैली रखी और भेरी का टुकड़ा मिल गया। बात की अपेक्षा थैली में ज्यादा ताकत है । सेठ ने उसको छुआ, बीमारी शांत हो गई ।
गूढ़ रहस्य और गुप्त बात छह कानों में जाए तो कैसे टिकी रह सकती है? बात फैलती गई । धीरे-धीरे दूसरे बीमार के पास पहुंची। उसने सोचा- यह तो बहुत अच्छी बात है । जो धनपति होता है उसे कोई चिंता तो होती नहीं है । वह भी रक्षक के पास गया और उसका भी काम हो गया। रिश्वत दे और काम न हो, यह कैसे संभव है? स्थिति यह बनी-रक्षक ने भेरी का एक टुकड़ा काटा और उसके स्थान पर चन्दन का टुकड़ा जोड़ दिया। फिर दूसरा काटा और दूसरा चन्दन का टुकड़ा जोड़ दिया ।
छह महिने की अवधि पूरी हुई। वासुदेव कृष्ण आए । भेरी को बजाने के लिए उसे हाथ में उठाया। अशिव का संहार करने वाली भेरी को बजाया। वे यह देखकर स्तब्ध रह गए - भेरी में कोई दम ही नहीं है । भेरी से कोई आवाज ही नहीं आ रही है । उन्होंने सोचा - दिव्य आवाज क्यों नहीं आ रही है? मेरी भेरी ऐसी कैसे है ? इसमें ध्वनि का जो टंकार होना चाहिए, वह क्यों नहीं हो रहा है? क्या हो गया है इसे? उन्होंने ध्यान से देखा तो पता चल गया- भेरी तो केवल चन्दन की है, चन्दन ही चन्दन लगा है. मूल द्रव्य है ही नहीं ।
मूल चला जाता है और चन्दन की भेरी बन जाती है । चन्दन की भेरी से वह कैसे हो सकता है, जो मूल दिव्य भेरी से हो सकता था? हमारे शरीर में जो हो सकता है, वह बाह्य आलंबन से कैसे हो सकता है? शरीर में चेतना है । हमने सूरज का आलंबन लिया, दिए की लौ का आलम्बन लिया किन्तु उनमें हमारी चेतना कहां है? शरीर के किसी भी केन्द्र का आलंबन लेते हैं तो केवल मन की एकाग्रता ही नहीं सधती, साथ-साथ वह भेरी का घोष भी निकलता है, चेतना भी सक्रिय बनती है, जागृत होती है। अनिमेषप्रेक्षा
आलम्बन तीन भागों में बंट गए एक है किसी बाहरी पदार्थ का आलम्बन, दूसरा है अपने शरीर का आलम्बन और तीसरा है स्वरूपालंबन |
प्रेक्षाध्यान में अनिमेषप्रेक्षा का ध्यान कराया जाता है। किसी बिन्दु पर ध्यान
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