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कि ऐसा सुन्दर पति होगा, घर को इस प्रकार सजाऊँगी, उनके दफ्तर से आने का समय होगा, तब मैं इस प्रकार प्रतीक्षा करूँगी, वे मुझे यह कहेंगे, मैं यह जवाब दूंगी. और ऐसे मधुर स्वप्न उसके सामने जाग्रतावस्था में भी साकार होते चले जाते हैं । लेखकों, कवियों, दार्शनिकों आदि को भी इसी श्रेणी में गिना जा सकता है।
दूसरे प्रकार का स्वप्न है निद्रावस्था स्वप्न । जब हम शरीर को शिथिल छोड़कर पूर्ण विश्राम की स्थिति में होते हैं, तब भी स्वप्न आते हैं, कभी तो वे स्वप्न हमारे साकार जगत् के होते हैं, कभी वे अद्भुत और अनोखे होते हैं । इन स्वप्नों को भी मुख्यतः तीन भागों में बाँट सकते हैं। स्वप्न के भेद : १-वास्तविक जीवन के स्वप्न
२-अद्भुत अपूर्व स्वप्न
३-भविष्यसूचक स्वप्न १. वास्तविक जीवन के स्वप्न-मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हम जीवन में चतुर्दिक बँधे हैं। सामाजिक, नैतिक, राष्ट्रीय व कई नियमउपनियम हैं, जिनसे बँधकर हम अपना जीवन व्यतीत करते हैं । फलस्वरूप व्यक्ति की वे इच्छाएँ, जिन्हें वह पूर्ण करना चाहता है, वास्तविक जीवन में पूर्ण नहीं होतीं। ऐसी स्थिति में उसकी वे इच्छाएँ उसकी स्वप्नावस्था में पूर्ण होती हैं । उदाहरणार्थ एक दरिद्री निर्धन व्यक्ति जब वास्तविक जीवन में अत्यन्त विपन्नावस्था में होता है, और वह चारों तरफ ऊँची अट्टालिकाएँ, चमचमाती कारें एवं धन्ना सेठों को देखता है तो वह स्वयं चाहता है कि वह सेठ बने, वैसी कारों में घूमे, पर वास्तविक जीवन में यह नितांत असम्भव है। ____तब स्वप्नावस्था में वह देखता है कि उसकी अचानक लॉटरी खुल गई है, वह चमचमाती कार में बैठा है, और उस सेठ को या तो कुचलकर आगे निकल जाता है, या उसकी जाती हुई कार से अपनी कार फर्राटे से आगे बढ़ा ले जाता है ।
उसके वास्तविक जीवन की असम्भवता इस प्रकार स्वप्न-जगत्
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