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"मुझे घुटन के इस धुंधलके से पार ले चलो, रोहित ! मेरा दम घुटा जा रहा है। डरती हूँ कि मेरा सीना न फट जाय ! अबला समझकर ही सही, मुझे इस नरक से निकाल लो ! मैं इस समय बदनामी चाहती हूँ। बस, एक हफ्ते के लिए मुझे बदनामी का दान दे दो!" रोमा ने बड़ी दीनता के साथ रोहित के पांव पकड़ लिये।
Pl नारी का एक और रूप ।
सपना । की लेखनी से उतरा है
यह उपन्यास ही नहीं नाजुक अनुभूतियों का अमृत-मंथन है
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