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"तुम अपने दिल में कांटों के गुच्छे कब तक रख सकती हो, मंजरी? कब तक विष घोल सकोगी?"
"जब तक बर्दाश्त कर सकेंगी। मेरा कलेजा बहुत विशाल है, विकी ! बर्दाश्त करने का सुख भी निराला होता है।" ____ "नहीं, मंजरी! तुम गलत कह रही हो। आदमी के दिल की बगावत के अंगारों पर तुम बर्फ उडेल रही हो। बगावत की आग भड़काने के लिए होती है, बुझाने के लिए नहीं !"
बगावत
& विशाल का आगामी अविस्मरणीय"
उपन्यास सुबोध पॉकेट बुक्स 2 दरियागंज, नई दिल्ली-110002