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स्वप्न क्या है ?
स्वप्न, मानव-जीवन को ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम वरदान है । यह दैवी वरदान चराचर जगत् में केवल मनुष्य को ही मिला है, जो कि उसके मानव-जीवन की सर्वोत्तम निधि कही जा सकती है।
कोई मनुष्य बिना स्वप्नों के जीवित नहीं रह सकता। यदि वह जीवित है, सक्रिय है, तो यह निश्चित है कि वह स्वप्न देखता है। अंग्रेजी में यह कहावत ही है कि "A man who does not dream does not live." शेक्सपियर ने भी एक स्थान पर कहा है कि "Dreams are such stuff as we are made of.".
हम स्वस्थ हों, तो स्वप्न में हम उसी प्रकार भाग लेते हैं, जिस प्रकार से वास्तविक जीवन में हमारा क्रियाकलाप होता है। स्वप्न मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-१. जाग्रतावस्था स्वप्न और २. निद्रावस्था स्वप्न । पहले प्रकार का स्वप्न कवियों, दार्शनिकों एवं प्रेमीप्रेमिकाओं का होता है । प्रेमीजाग्रतावस्था में अपनी प्रेमिका के बारे में सोचता है, और फिर कुछ क्षणों में वह उसके सामने साकार-सी हो जाती है । तन्मयता के उन क्षणों में वह उसके एक-एक हाव-भाव, एक-एक चेष्टा को देखता है; वह कब आँख झपकाती है, कब श्वास लेती है या निःश्वास छोड़ती है, उसे स्पष्ट दिखाई देता है। ___लगभग इसी प्रकार के स्वप्न कॉलेज के छात्र-छात्राओं के होते हैं-जीवन में मैं क्या बनूंगा, निश्चय ही मैं ऐसा बनूंगा, यह करूँगा, ऐसे करूँगा.. आदि-आदि । ऐसा हो स्वप्न अविवाहिता का होता है,