Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 10
________________ TAIविधि श्रीचन्द्रीया VI“अहण्णं भंते ! तुम्हाणं समीवे थूलगं पाणाइवायं संकप्पओनिरवराहं निरवेक्खं पच्चक्खामि जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं बतारोप सामाचारी मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि” वारत्रयं | भणनीयमिदम् , एवं अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे थूलगं मुसावायं जीहाछेयाइहेउयं कन्नालियाइ पंचविहं पच्चक्खामि दक्खिन्नाइअविसए अहागहियभंगएणं, एवं थूलगं अदत्तादाणं खत्तखणणाइयं चोरंकारकरं रायनिग्गहकारयं सच्चिपत्ताचित्तवत्थुविसयं पञ्चक्खामि, एवं ओरालियवेउव्वियभेयं थूलगं मेहुणं पच्चक्खामि अहागहियभंगएणं, तत्थ दुवि-// हंतिविहेणं दिव्यं तेरिच्छं एगविहं तिविहेणं मणुयं एगविहमेगविहेणं वोसिरामि, अहन्नं भंते ! परिग्गहं पडुच्च अप| रिमियं परिग्गहं पञ्चक्खामि धणधन्नाइनवविहवत्थुविसयं इच्छापरिमाणं उवसंपज्जामि अहागहियभंगएणं, एवं गुणव्वयतिए दिसिपरिमाणं पडिवज्जामि. उवभोगपरिभोगवए भोयणओ अणंतकायबहुवीयराइभोयणाइ परि कम्मओ णं पन्नरस कम्मादाणाई इंगालकम्माइयाई बहुसावज्जाइं खरकम्माइयं रायनिओगं च परिहरामि, अणत्थदिंडे अवज्झाणाइयं चउविहं अणत्थदंडं जहासत्तीए परिहरामि, अहण्णं भंते ! तुम्हाणं समीवे सामाइयं पोसहोववासो देसावगासियं अतिहिसंविभागवयं च जहासत्तीए पडिवज्जामि, इच्चेयं सम्मत्तमूलं पंचाणुबइयं सत्तसिक्खावइयं 1॥३ Jain Education inte For Private & Personal use only w.sainelibrary.org

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