Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 31
________________ उसग्ग थय सोहि तणु खमं गंधा । नवकारसमं समइय, वय सरणा असण तित्थथुई ॥१॥इय पडिपुन्नसुविहिणा अंते जो कुणइ अणसणं सम्मं । सो कल्लाणकलावं लड़े सिद्धिपि पाउणइ ॥२॥” यतिपर्यन्ताराधनाविधिरयम् ॥lta श्रावकस्याप्ययमेव विधिर्नवरम्-अहण्णं भंते ! तुम्हाणं समीवे मिच्छत्ताओ पडिकमामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि, इत्यादि सम्यक्त्वदण्डको गहिव्रतानि च तत्तदभिलापेन वाच्यानि, शेषं तथैव, सङ्कचैत्यादिकायां सप्तक्षेच्या द्रव्यनियोग कार्यते ॥ ७ ॥ ८प्रव्रज्याविधिरिदानीम-प्रशस्तदिवसे कृतविशिष्टनेपथ्यः समृद्ध्या गृहादागत्य जिनभवनं प्रविश्य कृतजिनपूजोऽक्षतभृताञ्जलिः प्रदक्षिणात्रिकं जिनभवनस्य समवसरणस्य च ददाति, वासाभिमन्त्रणं श्रुतसम्यक्त्वसामायकसर्वविरतिसामायिक आरोवणियं नंदिकड़ावणियं वासनिक्खेवं करेहत्ति शिरसि शिष्यस्य वासश्रीखण्डाक्षता दीयन्ते, यस्तु पूर्वमेव प्रतिपन्नसम्यक्त्वाणुव्रतो गही स सर्वविरतिसामायिकमारोवेहत्ति भणइ, तओ सूरी सीसं वामपार ठवित्ता वड्रेतियाहिं थुईहिं चेइयाई वंदइ काउरसग्ग ४. वेस अभिमन्त्रणं, वान्दत्ता सीसो भणइ-अम्हे पवावेह, मम वेसं समप्पेह, तओ सूरी उडाय नमुक्कारपुव्वं सुगतिं करेहत्ति भणंतो सीसदक्खिणबाहासंमुहं रओहरण Jain Education Intel For Private & Personal use only W ww.jainelibrary.org म

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