Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ श्रीचन्द्रीया सामाचारी | योगविधिः ॥२२॥ माए उत्तराए चिंतइ, पुणो पुव्वादिसाए बाहाओ तहेवावलीबय नमोक्कारं चिंतइ, पारिता मुहे नमोक्कारं पढित्तु भणइतवरिसणो ! पाभाइओ कालो सुज्झइ ?. इयरे भणंति-सुज्झइ, इच्छं मत्थएण वंदामित्ति आवसी आसज्ज ३ निसीहित्ति वारा ३ भाणित्तु नमोखमासमणाणंति भणंतो वंदिय ठवणायरियस्स अग्गओ इरियं पडिक्कमिय पुचि व पोत्तिं पडिलेहिय वंदणं दाउं पाभाइयकालं पवेएइ, तओ धम्मो मंगलाई सज्झायं काउं वंदिय दंडधरो भणइ-दिळं सुर्य वा ?, न किंपि, एवं वाघाइयअड्डरत्तियवेरत्तियावि घेप्पति तब्बयणाभिलावेण, वाघाइयअडरत्तिएसु नियमा उत्तरदिसि पुव्वं कालग्गहणं, वेरत्तिए भयणा-उत्तरा पुव्वा वा, पाभाइए पुवा चेव, वच्चंतस्स छीयखलियाइएसु एए उवहम्मंतित्ति विसेसो । एवं सुद्धे पाभाइए काले पडिक्कमणं काउं अंगवसहीणं पडिलेहणाइ संदिसाविय करिय वसहिं| सोहित्ता हड्डाई परिट्ठविय वाणायरिएण सह पोत्तिं पडिलेहित्ता कयकिइकम्मा वसहिं पवेएंति, तओ वंदित्ता कालं पवेएंति जहा सुद्धोत्ति, तओ वाणायरिओ सज्झायं ठवणायरियस्स अग्गओ पट्टवेइ जाव सुद्धो, इयरेवि तदणुन्नाए तण समं पट्ठवेति, सज्झायस्स पट्टावणियं करोमि काउस्सग्गं जाव अप्पाणं वासिरामि, चिंतणाइयं कालवद्वाच्यं, छीय. खलिएसु एत्थवि वाघाओ, तओ वाणायरिओ वंदणं दाउं सज्झायं पवेएति, इयरे उद्घट्टिया अच्छंति, तओ वाणाय. ॥२२ Jain Education in For Private & Personal use only Pww.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104