Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 75
________________ राहुत्तं पंगुरेत्ता अहाराइणियक्कम परिहरेत्ता तहाणाउ चेइयघरं गच्छंति, उमस्थगरयहरणेणं गमणागमणं आलोएंति, तओइरियावहिया पडिक्कमिज्जइ, तओ चेइयं उमत्थयंवदंति, सतिनिमित्तं अजियसंतित्थओ परियट्टिज्जइ, आगंतुं आय रियसगासे अविहिपारिद्यावणियाए काउस्सग्गो कीरइ, नमोक्कारं चिंतिय मुहेण भणंति, आयरिस्स महिडियस्स भत्तIN पच्चक्खायरस महातवस्सिस्स बहुसयणस्स बहुजणसंमयस्स वा मयस्स असज्झाओ खमणं च कीरइ, न सम्बत्थ, एस सिवे विही, असिवे खमणं असज्झाओ य न कीरइ. काउस्सग्गो अविहिविगिंचगत्थं कीरइ ॥ इति पारिस्थापनिकाविधिः ॥ ३२ ॥ | इह जम्मि दिणे सावओ साविया वा पोसहं लेइ तम्मि दिणे घरवावारं वज्जिय गोसग्गे गहियपोसह जोग्गोवगरणो पोसहसालं साहुसमीवे वा गच्छइ, तओ अंगपडिलेहणं करेइ, तओ उच्चारपासवणथंडिले पडिलेहेइ, तओ गुरुसमीवे नवकारपुव्वं ठवणायरियं वा ठविचा इरियावहियं पडिक्कमइ, खमासमणेण बंदिय पोसहमुहपोति । पडिलेहेइ, तओ खमासमणेण पोसहं संदिसाविय तओ बीयक्खमासमणेण पोसहे ठामि, इय भणिय उद्घट्टिओ नमोक्कारं पढिऊण करेमि भंते! पोसह इच्चाइ दंडयं पढइ, तओ पुणोऽवि मुहपोत पडिलेहिऊण तओ पढमखासमणेण Lal in Education International For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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