Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
अह सरीरचिंताए उट्ठइ तो सरीरचितं करिय इरियावहियं पडिक्कमिय जहन्नेणवि गाहातिगं गुणइ, तओ सुयइ, सुत्तोवि जाव न निद्दा एइ ताव धम्मजागरियं जागरेइ, तओ रयणीए पच्छिमपोरिसीसमयंमि उद्वेइ, इरियावहियं पडिक्कमिय राइयपायच्छित्तविसोहणत्थं काउस्सग्गो, तओ सक्कत्थयं भणइ, तओ सकायं मुहपोति पडिलेहित्ता नमोकार पुव्वं सामाइयं दंडयं उच्चरेइ, तओ सज्झायं संदिसाविय ताव करेइ सज्झायं
जाव पाभाइयपडिक्कमणवेला, तओ विहिणा पडिक्कमणं करेइ, पच्छा जायाए पडिलेहण वेलाए पडिले. Nणाइ करेइ, तओ पाउंछणयपरिहाणयं ठवणायरियं पडिलेहित्तु पत्तिपडिलेहणापुवं उवहिं पडिलहिय भापमज्जिय पोसहसालं पढइ गुणइ वा जाव पारणवला, तओ मुहपोतं पडिलोईत्ता खमासमणं दाउं|
भणइ-इच्छाकारेण संदिसह पोसह पारहं, तओ बीयखमासमणं दाउं भगइ-पोसहु पारियं, तओ नवकारं भणिय || मुहपोत्तिं पहित्ता सामाइयं पारइ, तओ ‘भयवं दसन्नभदो' इच्चाइगाहाओ पढइ । पोसह पारिए नियमा साहू
ओसहभेसज्जाइ विहरावेऊण पारेयव्वयंति ॥ इय एसो अहोरत्तपोसहगहणविही सम्मत्तो ॥ श्लोक ६६ ॥ कल्लाणकंदकंदल कारणमइतिक्ख (मिच्छ) निद्दलणं । सम्मइंसणरयणं सिवसुहसंसाहणं भाणयं ॥ १॥ तरस य संसि
Jain Education intline
For Private & Personal use only
(Gldww.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104