Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 56
________________ श्रीचन्द्रया सामाचारी ॥ २६ ॥ एत्थ पमायअन्नाणाइणाऽकए पुव्वत्तेऽणुट्ठाणे जोगवाहिणो पच्छित्तमेयं-जोगवाही हत्थसयाओ बाहिं जइ जाइ तो | आयामं पच्छित्तं, हत्थे भत्तं पाणं वा जं तं चोवहम्मइ उस्संघट्टं भुञ्जइ अभत्तट्ठो, लेवाडपरिवासेऽभ०, आहाक| म्मियपरिभोगे अभ०, सन्निहिपरिभोगे अभ०, अकालसन्नाए अभ०, जइ थंडिले न पडिलेहेइ उडं करेइ अभ०, असंखर्ड करेइ अभ०, कोहमाणमायालोभेसु अभ०, पंचसु वएस अभ०, अब्भक्खाणपेसुन्ने पर परिवासु अभ पोत्थं | भूमीए पाडेइ कक्खाए करेइ दुग्गंधहत्थेहिं लेइ थुक्काहिं भरेइ एवमाइ अभ०, रयहरणचोलपट्टय उग्गहाउ | फिडिए अभ०, उन्भो न पडिक्कमइ वेरत्तियं न करेइ अभ०, कवाडं किडियं वा अप्पमज्जियं उग्घाडेइ पुरिमङ्गं, | कालरस न पडिक्कमइ गोयरचरियं न पडिक्कमइ आवस्सियं निसीहियं वा न करेइ निव्वीयं, छप्पयाउ संघट्टेइ अणागाढं पुरि०, गाढासु एगासणं, उहियं न पडिलेहेइ अभ०, उद्देससमुद्देसअणुन्नाय भोयणपडिक्कमणभूमीउ न पमज्जेइ अभत्तट्ठो, - एयं जोगविहाणं संखेवेणं तु तुम्हमक्खायं । जं च न एत्थ उ भणियं गीयायरणाउ तं नेयं ॥ १ ॥ नाणं | पंचविहं पन्नत्तं, तंजहा - आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं, तत्थ चत्तारि नाणाई ठप्पाईं |ठवणिज्जाई नो उद्दिसिज्जंति नो समुद्दिसिज्जंति नो अणुन्नविज्जंति, सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अणुओगो Jain Education International For Private & Personal Use Only योग विधिः द्वारं १७ ॥ २६ ॥ www.jainelibrary.org

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