Book Title: Subodh Samachari
Author(s): Macchindracharya
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 68
________________ २० ॥३२॥ चिन्द्रीया मेणं पंचहिं दिवसेहिं पढमं सयं जाइ, एगंतरायामं जाव चमरो, बीयसएवि दस उद्देसगा, नवरं पढमुद्देर | योगविधान सामाचारी खंदओ तस्स अंबिलेणं उद्देसो समुद्देसो य पढमदिणे कीरइ, जइ तंमि दिणे उडिओ तदिवसं अणुन्नब्वइ, उट्टिउत्ति पाढत्तेणं समागउत्ति भणियं होइ, अह न उढिओ तो बीयदिणे आयंबिलेण अणुनव्वइ, दत्तीओ पंच भवंति सपाणभोयणाओ, तंमि उद्दिढे समुद्दिढे य न अग्गओ काउस्सग्गाइ कीरइ, किंतु बीयादणेऽणुन्नाऽणंतरं काKउस्सग्गाइ कीरइ, सेसा दो दो उद्देसा दिणे २ जंति जाव अट्ठद्देसा, एगंमि दिणे दसमो सयं च, सम्वेऽवि दिणा । सत्त ७ काला सत्त ७, तइयसएवि दस उद्देसा नवरं पढमदिवसे पढमकालेण पढमुद्देसयमणुजाणिय बीयदिवसे बीयउद्देसओ चमरो सेसं खन्दकवत, तत्थवि पंच दत्तीओ सपाणभायणाओ, नवरं पढमुद्देसरस उद्दसाइ काउं चमरस्स उद्देसो समुद्देसो य भिन्नकालेण कीरइ, जइ न उट्ठवेइ बीए दिणे आयंबिलेण अणुन्ना, सेसा अट्ठ चउहिं दिवसेहिं सएण समं वच्चंति, एत्थ दिणा सत्त ७ काला सत्त ७, पन्नरसहिं कालहिं गएहिं चमरे अणुनाए। छट्ठजोगो लग्गइ, पंच एगसरा निव्वीया छट्ठदिणे अंबिलं, अन्ने छन्निन्वीया सत्तमं अंबिलं, जाव गोसालोत्ति, । तहा संधूयवग्धारियं तीमणवंजणाइ सव्वं गहिउं कप्पइ तदिणकयंपि, पुवमेयमकप्पमासी, अन्नं च वाणाय Jain Education Interational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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